एस• के• मित्तल
सफीदों, गुरू गौरखनाथ आश्रम कुरड़ में मकर संक्रांति पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए भक्त हरिराम ने कहा कि मकर संक्रांति पर्व को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण की अवधि देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात्रि है। मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिए गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं।
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। माना जाता है कि सूर्य के उत्तरायण के समय देह त्याग करने या मृत्यु को प्राप्त होने वाली आत्माएं पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिल जाता है और इसे मोक्ष प्राप्ति भी कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।
मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। यह पर्व दान और पुण्य का पर्व है। इस पर्व पर खुले दिल के साथ दान इत्यादि करना चाहिए।