पंजाब में एक ऐसा गांव भी है, जहां दशहरे के दिन रावण को जलाया नहीं जाता बल्कि उसका पूजन किया जाता है। यह गांव लुधियाना जिले के पायल कस्बे में है। यह गांव रावण को नायक मानता है। करीब 189 साल पहले से इस गांव में रावण की पूजा की परपंरा शुरू हुई।
जो आज भी जारी है। दशहरे के दिन रावण की शराब की बोतल और बकरे के खून से पूजा की जाती है। रावण पूजा की आस्था पुत्र जन्म से जुड़ी हुई हैं। वहीं एक बार जब कुछ शरारती लोगों ने रावण की मूर्ति तोड़ दी तो श्रीलंका की प्रधानमंत्री की सिफारिश पर इसे दोबारा लगाया गया।
रावण पूजा के पीछे की कहानी
पुत्र रत्न से जुड़ा विश्वास : दूबे परिवार के सदस्य अनिल दूबे ने बताया कि उनके पूर्वज हकीम बीरबल दास को 2 विवाह के बाद भी औलाद सुख नहीं मिला। जिस वजह से वह सन्यास लेकर चले गए। वहां एक संत ने उन्हें रामलीला कराने और गृहस्थ जीवन जीने की प्रेरणा दी। लौटकर दशहरे वाले दिन उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। इसके पीछे वह रावण का आशीर्वाद मानते थे।
दूबे बताते है कि जिस तरह उनके पूर्वज के चार बेटे हुए, उसी तरह महात्मा रावण के आशीर्वाद से उनके भी चार बेटे है। दूबे कहते है लोग यहां पुत्र रत्न की प्राप्ति की मन्नत मांगने आते हैं। जब उनकी मन्नत पूरी हो जाती है तो दशहरे के दिन यहां शराब की बोतल चढ़ाते हैं। अनिल दूबे ने कहा कि उनके परिवार के सदस्य पठानकोट,चंडीगढ़ भोपाल, कैनेडा और आस्ट्रेलिया से दशहरा वाले दिन यहां जरूर पहुंचते है।
दशहरा के दिन ही जन्मे चारों बेटे : अनिल दूबे बताते है कि वह खुद भी चार भाई है चारों भाइयों का जन्म दशहरा वाले दिन चार-चार साल के अंतराल में हुआ था। वहीं अब जो उनके चारों बेटे है, उनका जन्म भी दशहरा वाले ही हुआ है। इसकी वजह कहीं न कहीं महात्मा रावण पर उनकी आस्था है। दूबे के मुताबिक जिस किसी के संतान की प्राप्ति नहीं होती, उन्हें एक बार जरूर महात्मा रावण का आशीर्वाद लेना चाहिए।
बकरे की बलि और शराब चढ़ाने की प्रथा
अनिल दूबे बताते है कि महात्मा रावण को दशहरा वाले दिन शराब चढ़ाई जाती है। वैसे तो अब सांकेतिक तौर पर शराब की बोतल से छींटा और बकरे के कान पर चीरा लगा कर रक्त रावण को लगाया जाता है। बकरे के कान से थोड़ा सा खून लेकर रावण के बुत का तिलक कर दिया जाता है। दूर- दूर से लोग यहां रावण की पूजा के लिए आते हैं। देर शाम को यह प्रथा पूरी की जाती है।
दूबे परिवार ने 1835 में बनवाया मंदिर
बता दें 1835 में दूबे परिवार के हकीम बीरबल दास जी ने श्री राम मंदिर बनवाया था। इसके बाद यही लंकापति रावण का रुई आदि से बुत बनाकर पूजन किया जाता था। कुछ वर्ष बीत जाने के बाद यहां पक्के तौर पर ही सीमेंट के रावण का पुत स्थापित करवा दिया गया। 187 वर्ष से लगातार अब इस बुत ही हर वर्ष पूजा की जाती। रावण के बुत की संभाल और श्री राम मंदिर की संभाल दूबे परिवार कर रहा है। ये परिवार हकीम बीरबाल दास जी की 7वीं पीढ़ी है।
… जब श्रीलंका की PM की सिफारिश पर दोबारा बना पुतला
गांव के रहने वाले यशपाल ने बताया कि 1968 में कुछ अंधविश्वासी लोगों ने प्रतिमा को शहर की तरक्की में रुकावट बताकर रातों-रात तोड़ दिया था। दूबे परिवार की कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। आखिर में रामाकांत दूबे ने टेलीग्राम के जरिये एक संदेश श्रीलंका की प्रधानमंत्री श्रीमती सिरिमावो भंडारनायके को भेजा। श्रीलंका की प्रधानमंत्री सिरिमावो भंडारनायके ने भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को संदेश भेजा और तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने दखल देकर तुरंत मामला हल करवाया।
जिस मिस्त्री ने बनाया उसी के सपने में आने लगे रावण
गांव निवासी गुरदीप सिंह काली बताते है कि जिस मिस्त्री ने रावण का बुत बनाया था उस मिस्त्री के सपने में रावण आने लगे। मिस्त्री डरा और सहमा मंदिर में आया और खुद बताने लगा कि रावण उसके सपने में आ रहे है। मिस्त्री ने बताया था कि रावण उसे तंग करे रहे क्योंकि जब उसने महात्मा रावण का बुत बनाया था तो वह पैरों में जूते लिए रावण के सिर पर जा चढ़ा था। जिस कारण रावण उस पर क्रोधित थे। मिस्त्री ने रावण के बुत के आगे क्षमा याचना मांगी फिर कही जाकर रावण ने उसका पीछा छोड़ा।