रेवाड़ी ट्रॉमा सेंटर में भर्ती घायल।
सोमवार दोपहर करीब डेढ़ बजे का समय था। हम सभी ब्रजमंडल यात्रा में शामिल गाड़ियों के काफिले में शामिल होकर नल्हड़ शिव मंदिर से फिरोजपुर-झिरका की तरफ रवाना ही हुए थे कि अचानक पूरा काफिला रूक गया। हमारी बस पीछे थी, जिसमें काफी सारे बच्चे शामिल थे। हम कुछ समझ पाते इससे पहले बस पर पत्थर आने शुरू हो गए।
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कुछ सेकेंड बाद ही मंजर खौफनाक रूप में बदल गया। पत्थरों की ऐसी बारिश हुई कि खुद को संभालना भी मुश्किल हो गया। पहले एक तरफ से पत्थर फैंके जा रहे थे। उसके कुछ सेकेंड बाद ही चारों तरफ से पत्थरों की बारिश हुई। हालात ये बने की बस में चीख-पुकार मच गई। कुछ लोग बस से निकल भाग गए। इसमें बस का चालक भी शामिल था।
10 लोग ही बस में बचे। इसी बीच उपद्रवियों की भीड़ पहुंच गई। एक-एक आदमी की जेब चेक की और बोल रहे थे कि बंदूक तो नहीं है। इसके बाद उनके मोबाइल फोन और पर्स छीन लिए। एक व्यक्ति ने उनकी मदद की और फिर उनके साथ ही यात्रा में गए अनट्रेड ड्राइवर ने बस का स्टेरिंग संभाला और उन्हें 50 किलोमीटर दूर रेवाड़ी लाकर ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया।
इस खौफनाक मंजर की कहानी भिवानी निवासी सुधांशु ने सुनाई। सुधांशु अपने साथियों के साथ ब्रजमंडल यात्रा में शामिल होने पहुंचा था। लेकिन उन्हें ये मालूम नहीं था कि यात्रा के दौरान ऐसा बवाल होगा। सुधांशु की माने तो एक पल उन्हें भी लगा कि अब जान बचना मुश्किल है।
भिवानी के यात्रियों की बस के टूटे हुए तमाम शीशे।
10 लोग रेवाड़ी में भर्ती
बता दें कि नूंह हिंसा में घायल हुए 10 लोग रेवाड़ी शहर के सरकुलर रोड स्थित ट्रॉमा सेंटर में भर्ती है। इन तमाम घायलों के सिर फूटे हुए है। इनमें युवा से लेकर बुजुर्ग तक शामिल है। नूंह में हिंसा के वक्त बिताए कुछ घंटे की खौफनाक कहानी बताते हुए उनकी अब भी रूह कांप उठती है। इन्हें अनट्रेंड ड्राइवर बस चलाकर नूंह से 50 किलोमीटर दूर तक रेवाड़ी लेकर आया।
15 किलोमीटर सिर्फ आंखे बंद कर सफर
सुधांशु ने बताया कि जब वह हिंसा में फंसे तो लग रहा था कि अब निकलना मुश्किल है, लेकिन उनके साथ गए एक भाईया ने बस का स्टेरिंग संभाला। उसके सिर पर खुद चोट लगी थी। उसने बस की रफ्तार बढ़ाई और फिर गुगल नेविनेशन के सहारे गांवों के रास्तों से होकर रेवाड़ी की तरफ मुड गए।
करीब 15 किलोमीटर तक रास्ते में बीच-बीच में उनकी बस पर पथराव होता रहा, लेकिन भैया ने बस नहीं रोकी। हम सभी आंखे बंद कर बैठे हुए थे। बस में बैठे-बैठे ही कुछ लोगों के पत्थर लगने से सिर फूट गए। खून बहता रहा। लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कुछ सेकेंड रूक जाए।
किसी तरह जब नूंह की सीमा से निकले तो थोड़ी राहत मिली, लेकिन हमने बस नहीं रोकी और सीधे बस को रेवाड़ी ट्रॉमा सेंटर लेकर पहुंचे। बस की हालत ये थी कि एक भी विंडो पर शीशे नहीं बचे। यहां हम सभी 10 लोगों को इलाज चल रहा है। हमारे कुछ लोग हिंसा के वक्त वहीं पर फंस गए थे।
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