प्रेम से भगवान की लीला कथा का श्रवण व स्मरण करना चाहिए: डा. शंकरानंद सरस्वती

 

एस• के• मित्तल   

सफीदों, नगर के महाभारतकालीन नागक्षेत्र तीर्थ के मंदिर हाल में भक्ति योग आश्रम के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद् भागवत अमृत कथा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कथा व्यास स्वामी डा. शंकरानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया।

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ब्रह्मास्त्र के लगने से अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ। एक दिन वह राजा परीक्षित समीक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने आवाज लगाई लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है। उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित है और यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है।

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देवयोग वश परीक्षित ने आज वहीं मुकुट पहन रखा था। सातवें दिन तक्षक नामक सर्प द्वारा मृत्यु की बात सुनकर परीक्षित महाराज दुखी नहीं हुए और अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंपकर गंगा नदी के तट पर पहुंचे। वहां पर बड़े-बड़े ऋषि, मुनि व देवता आ पहुंचे और अंत मे व्यास नंदन शुकदेव वहां पर पहुंचे। शुकदेव इस संसार में भागवत का ज्ञान देने के लिए ही प्रकट हुए हैं। तब श्री सुखदेव जी आकर 7 दिनों तक उन्हें भागवत की कथा सुनाई। सुखदेव जी ने कहा कि सभी मनुष्य को प्रेम से भगवान की लीला कथा का श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिए। भगवान विष्णु के नाभि से कमल और कमल से ब्रह्मा जी की सृष्टि हुई।

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पुन: ब्रह्मा जी ने मनु और शतरूपा का सृष्टि कर नथुनी सृष्टि का विस्तार किया। ब्रह्मा जी के द्वारा मनकारी ऋषियों वराह भगवान का अवतार हुआ। वराह भगवान ने पृथ्वी की स्थापना और हिरण्यकश्यप का वध किया।

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