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एस• के• मित्तल
सफीदों, आर्य ने सफीदों में संथारा साधिका परमेश्वरी देवी के दर्शन किए और उनके सकुशल संथारे की कामना की। बता दें कि नगर के वार्ड 12 आनंद कालौनी निवासी जैन धर्म की अनुयायी 82 वर्षीय परमेश्वरी देवी ने श्री एसएस जैन स्थानक में चातुर्मास कर रहे नवीन चंद्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज की पावन उपस्थिति में संथारा ग्रहण किया है।
सफीदों, आर्य ने सफीदों में संथारा साधिका परमेश्वरी देवी के दर्शन किए और उनके सकुशल संथारे की कामना की। बता दें कि नगर के वार्ड 12 आनंद कालौनी निवासी जैन धर्म की अनुयायी 82 वर्षीय परमेश्वरी देवी ने श्री एसएस जैन स्थानक में चातुर्मास कर रहे नवीन चंद्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज की पावन उपस्थिति में संथारा ग्रहण किया है।
संथारा साधिका परमेश्वरी देवी स्व. लाला प्यारेलाल जैन की पुत्रवधू एवं स्व. लाला सदानंद जैन (सिंघाना वाले) की धर्मपत्नी है। उनके संथारा ग्रहण करने को लेकर उनके निवास पर श्रद्धालुओं का दर्शनार्थ तांता लगा हुआ है। पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य को पवित्र आत्मा परमेश्वरी देवी के द्वारा संथारा ग्रहण करने की मीडिया व अन्य माध्यमों से जैसे ही पता चला तो वे भी दर्शनार्थ दौड़ पड़े और उन्होंने आनंद कालोनी पहुंचकर संथारा साधिका परमेश्वरी देवी के दर्शन किए। इस मौके पर बचन सिंह आर्य ने परमेश्वरी देवी के पुत्र अभय जैन, पौत्र गौरव जैन व गौत्तम जैन सहित अन्य परिवाजनों से विस्तार से बातचीत की और इस संथारे को लेकर संपूर्ण परिवार को पुण्य का भागी बतलाया।
अपने संबोधन में पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य ने कहा कि संथारा परंपरा आज की नहीं है बल्कि आदिकाल से चलती आ रही है। भगवान राम ने भी इस धरा पर अंतिम समय में जलसमाधि के रूप में संथारा ग्रहण किया था। एक बार संत विनोबा भावे ने भी कहा था कि गीता और महावीर से बढ़कर इस संसार में कोई नहीं है। विनोबा भावे ने जैन संतों का भी अनुकरण किया है और उनकी भी सल्लेखना हुई थीं। उन्होंने कहा कि जिसकी पुण्यवाणी उदय होती है वहीं पवित्र आत्मा संथारे को ग्रहण करती है। संथारे का मतलब जीवन के अंतिम समय में तप-विशेष की आराधना करना है। आत्मा और परमात्मा का चिंतन करते हुए जीवन की अंतिम सांस तक अच्छे संस्कारों के प्रति समर्पित रहने की विधि का नाम संथारा है।
आखिरी समय में किसी के भी प्रति बुरी भावनाएं नहीं रखीं जाएं। यदि किसी से कोई बुराई जीवन में रही भी हो, तो उसे माफ करके अच्छे विचारों और संस्कारों को मन में स्थान दिया जाता है। संथारा लेने वाला व्यक्ति भी हलके मन से खुश होकर अपनी अंतिम यात्रा को सफल कर सकेगा और समाज में भी बैर बुराई से होने वाले बुरे प्रभाव कम होंगे। संथारा वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक विधि माना गया है।
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