निजता के नाम पर महिलाओं के हक दबाना आम: CJI चंद्रचूड ने कहा- महिला अधिकारों को बचाने के लिए कानूनों में बदलाव जरूरी
CJI डी वाई चंद्रचूड़ बेंगलुरु में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के इवेंट में शामिल हुए थे।(12 दिसंबर 2023) राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक न्यूज़पेपर में प्रिंट आज की ख़बर…
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड ने घरों के भीतर महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन को लेकर कानून बनाने की जरूरत बताई है। CJI रविवार 17 दिसंबर को नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी बेंगलुरु में एक इवेंट में मौजूद थे।
उन्होंने कहा- निजता की आड़ में घरों के भीतर महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन आम बात है। वक्त आ गया है इसे लेकर कानूनों में अहम बदलाव किए जाएं।
शांति भंग करने पर निजी और सार्वजनिक दोनों जगहों पर एक सा कानून लागू हो
चंद्रचूड ने कहा- मैंने सार्वजनिक और निजी दोनों स्थानों पर लैंगिक भेदभाव देखा है। भारतीय दंड संहिता में प्रावधान है कि जब दो या दो से अधिक व्यक्ति झगड़े में पड़कर सार्वजनिक शांति भंग करते हैं, तो अपराध माना जाता है। हालांकि, यह केवल तभी दंडनीय है, जब यह सार्वजनिक स्थान हो।(10 दिसंबर 2023) राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक न्यूज़पेपर में प्रिंट ख़बर..
CJI बोले- लेकिन, अगर निजी स्थान पर ऐसा हो तो इसे अपराध नहीं माना जाता। इस द्वंद्व ने कई सालों से हमारे कानूनों की नारीवादी और आर्थिक आलोचना का आधार बनाया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वास्तव में अस्तित्व में है। इसलिए दोनों ही स्थानों पर इसका अस्तित्व होना चाहिए।
घरों में महिलाओं के परिश्रम का मेहनताना तक नहीं
चंद्रचूड ने कहा- भारतीय घरों में महिला एक गृहिणी के रूप में लगातार परिश्रम करती है। इसलिए घर ही उसके लिए आर्थिक गतिविधि का भी स्थान है। लेकिन, इसके लिए उसे आर्थिक मेहनताना तक नहीं मिलता है। उसे सिर्फ शारीरिक संबंधों तक सीमित रखा जाता है। यह भी एक तरह के अधिकारों का उल्लंघन ही है। इससे निपटने के लिए कानून में कोई भी खास या स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
महिलाओं के लिए पहले भी कई बार मुखर रहे CJI
1. वकालत में महिलाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए
अक्टूबर में जयपुर में हाईकोर्ट के प्लेटिनम जुबली समारोह के शुभारंभ के मौके पर CJI ने कहा था वकालत के पेशे में महिलाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट में वकील कोटे से सिर्फ दो महिला जज होने पर आश्चर्य जताया था। उन्होंने कहा कि देश बहुत तेजी से बदल रहा है, ऐसे में न्यायपालिका को भी वक्त के साथ बदलना चाहिए। हमें नई तकनीक के इस्तेमाल को लेकर हिचक नहीं होनी चाहिए।
2. अदालतों में प्रॉस्टिट्यूट-मिस्ट्रेस जैसे शब्द इस्तेमाल नहीं होंगे
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और दलीलों में अब जेंडर स्टीरियोटाइप शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले आपत्तिजनक शब्दों पर रोक लगाने के लिए जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक लॉन्च की है। अगस्त 2023 में हैंडबुक जारी करते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि इससे जजों और वकीलों को ये समझने में आसानी होगी कि कौन से शब्द रूढ़िवादी हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है।
3. सेक्सिस्ट भाषा, भद्दे चुटकुलों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस जरूरी मार्च में महिला दिवस पर हुए एक इवेंट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने महिलाओं के लिए गलत व्यवहार, सेक्सिस्ट भाषा और भद्दे चुटकुलों के लिए जीरो टॉलरेंस सुनिश्चित करने की बात कही थी। उन्होंने कहा था महिलाओं के लिए सेक्शुअल हैरेसमेंट को लेकर जीरा टॉलरेंस हो। उनकी मौजूदगी में भी उनके लिए गलत भाषा के इस्तेमाल और भद्दे जोक सुनाने जैसी चीजें भी खत्म होनी चाहिए।
4. लीगल प्रोफेशन में महिला-पुरुष अनुपात निराशाजनक
चंद्रचूड़ ने चेन्नई में एक इवेंट में कहा था कि कोर्ट-कचहरी से जुड़े पेशे में महिला और पुरुषों का अनुपात निराशाजनक है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को पुरुषों के समान ही मौके दिए जाने चाहिए। युवा और काबिल महिला वकीलों की कोई कमी नहीं है। लेकिन यह माना जाता है कि उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियां उनके ऑफिस के कामकाज में रुकावट बनेंगी।
(13 दिसंबर 2023) राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक न्यूज़पेपर में प्रिंट आज की ख़बर.
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