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एस• के• मित्तल
सफीदों, धर्म स्थलों को अगर लोग पर्यटन का केेंद्र बनाएंगे तो प्रलय आनी निश्चित है। उक्त उद्गार वेदाचार्य दण्डी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज ने प्रकट किए। वे नगर के श्री हरि संकीर्तन भवन में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म स्थलों को केवल आस्था का केंद्र रहने देना चाहिए। वर्तमान माहौल में देखा जा रहा है कि धर्मस्थलों को पर्यटन का केंद्र मान लिया गया है।
सफीदों, धर्म स्थलों को अगर लोग पर्यटन का केेंद्र बनाएंगे तो प्रलय आनी निश्चित है। उक्त उद्गार वेदाचार्य दण्डी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज ने प्रकट किए। वे नगर के श्री हरि संकीर्तन भवन में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म स्थलों को केवल आस्था का केंद्र रहने देना चाहिए। वर्तमान माहौल में देखा जा रहा है कि धर्मस्थलों को पर्यटन का केंद्र मान लिया गया है।
आधुनिकता व अत्यधिक सुविधाओं की उपलब्धता के कारण स्थिति ओर अधिक गंभीर होती जा रही है। पहले लोग धर्मस्थलों पर पैदल या दण्डवत होकर जाते थे और भगवान के प्रति अपनी अटूट आस्था प्रकट करते थे और उन्हे उसका पुण्य फल भी प्राप्त होता था। मनुष्य का स्थान भगवान के चरणों में होता है ना कि उनके सिर पर लेकिन आज स्थित यह है कि ऊंचाई पर स्थित धर्मस्थलों पर लोग हैलीकाप्टर के माध्यम से भगवान के मंदिर के शिखर के ऊपर से चक्कर लगाते हैं और वहां पर उतरते है। धार्मिक स्थानों पर लोगों की भागमभाग ने वहां की व्यवस्थाओं और मर्यादाओं को तहस-नहस कर दिया है। वेदाचार्य ने साफ किया है लोग आध्यात्म के नजरिए से धर्मस्थलों पर जाए नाकि पर्यटन की दृष्टि से। अगर मनुष्य ऐसा करता रहा और नहीं रूका तो उसे दुष्परिणाम भुगतने होंगे और प्रकृति के कोप का भाजन बनना पड़ेगा।
प्रकृति अपने ऊपर कभी अत्याचार सहन नहीं करती और आपदाओं के रूप में अपना बदला अवश्य लेती है। कुछ वर्षों वह केदारनाथ व बद्रीनाथ धाम पर प्रकृति के प्रकोप को लोग भलीभांति देख चुके है। इस प्रकोप में वहां पर सबकुछ साफ हो गया और अगर कोई बचा था तो वह भगवान का मंदिर। उस प्रकोप में हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। निगमबोध तीर्थ महाराज ने कहा है कि मानव सेवा सबसे बड़ा धर्म है और गरीब असहय की सहायता करने से जन्म जन्मांतर के पुण्य का उदय होता है।
प्रत्येक व्यक्ति को अपने सामथ्र्य अनुसार गरीब और निराश्रित लोगों की सहायता करनी चाहिए। मानव सेवा ही ईश्वर पूजा के समान है और सनातन धर्म में भी सेवा को सर्वोपरि माना गया है।
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