एस• के• मित्तल
सफीदों, वरिष्ठ पत्रकार डा. वेदप्रताप वैदिक का अचानक यूं चले जाना इस देश की पत्रकारिता के साथ-साथ आर्य समाज के लिए बहुत बड़ी क्षति है। वे आर्य समाज के संस्कारों से भरपूर थे और ऋषि दयानंद के अनुयायी थे। यह बात पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य ने की।
सफीदों, वरिष्ठ पत्रकार डा. वेदप्रताप वैदिक का अचानक यूं चले जाना इस देश की पत्रकारिता के साथ-साथ आर्य समाज के लिए बहुत बड़ी क्षति है। वे आर्य समाज के संस्कारों से भरपूर थे और ऋषि दयानंद के अनुयायी थे। यह बात पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य ने की।
बचन सिंह आर्य ने डा. वेदप्रताप वैदिक के साथ बिताए गए पलों को याद करते हुए कहा कि डा. वेदप्रताप वैदिक की गिनती देश के बड़े आर्य समाजियों में होती थी। सन् 1986 से लगतार आर्य समाज के अनेक समारोह में उनका डा. वैदिक से मिलना-जुलना हुआ। वे बड़े सौम्य व मिलनसार स्वभाव के व्यक्तित्व थे। अभी हाल ही में वे सोहना में आर्य समाज के एक कार्यक्रम में मिले थे और उन्होंने इस मुलाकात के दौरान बहुत जल्द सफीदों में आने का वायदा किया था लेकिन भगवान को कुछ ओर ही मंजूर था।
उन्होंने कहा कि डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए लगातार संघर्ष किया था। उन्होंने अपना पूरा जीवन पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन व अंतरराष्ट्रीय राजनीति को जानने में लगाया। वे हिंदी के साथ-साथ रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार हैं।
वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा। डा. वैदिक हिंदी सत्याग्रही के तौर पर वे 1957 में पटियाला जेल में रहे। बचन सिंह आर्य ने कहा कि डा. वेदप्रताप वैदिक के अकस्मात निधन वे स्तब्ध हैं।