ISRO ने 23 अगस्त को 30 किमी की ऊंचाई से शाम 5 बजकर 44 मिनट पर ऑटोमैटिक लैंडिंग प्रोसेस शुरू की थी। 20 मिनट बाद 6.04 बजे लैंडर विक्रम चांद की सतह पर उतरा था।
इसरो आज 23 सितंबर को चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान और लैंडर विक्रम को जगाने के प्रयास करेगा। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कल 22 सितंबर को कहा था कि अभी तक चंद्रयान से कोई सिग्नल नहीं हैं। संपर्क स्थापित करने की हमारी कोशिशें जारी रहेंगी।
14 दिनों की रात के बाद चांद के साउथ पोल पर एक बार फिर सूरज की रोशनी पहुंचने लगी है। ऐसे में इसरो को स्लीप मोड पर डाले गए विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के जागने की उम्मीद है। इसरो ने 4 सितंबर को लैंडर को स्लीप मोड में डाला था। इससे पहले 2 सितंबर को रोवर को स्लीप मोड में डाला गया था। इसरो ने लैंडर-रोवर के रिसीवर ऑन रखे हैं।
रोवर ऐसी दिशा में कि सूर्य का प्रकाश सौर पैनल पर पड़े
इसरो ने लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को स्लीप मोड में डालने से पहले बैटरी को फुल चार्ज रखा था। रोवर को ऐसी दिशा में रखा गया था कि सूर्योदय होने पर सूर्य का प्रकाश सीधे सौर पैनलों पर पड़े। उम्मीद की जा रही है कि ये फिर से काम करना शुरू करेगा।
इसरो ने 25 अगस्त को यह वीडियो शेयर किया था। इसमें प्रज्ञान रोवर लैंडर के रैंप से बाहर निकलता दिख रहा है।
14 जुलाई 2023 को लॉन्च हुआ था चंद्रयान-3 मिशन
चंद्रयान-3 को 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर लॉन्च किया गया था। आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से LVM3 रॉकेट के जरिए इसे स्पेस में भेजा था। 23 अगस्त को इसने चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग की थी। भारत ऐसा करने वाला पहला देश है।
श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से 14 जुलाई 2023 को लॉन्च हुआ था चंद्रयान-3 मिशन
साउथ पोल पर सल्फर खोजा, विक्रम की दोबारा लैंडिंग
- सतह और गहराई के तापमान में बड़ा अंतर: 28 अगस्त को लैंडर में लगे चास्टे पेलोड से पता चला था कि चंद्रमा की सतह और अलग-अलग गहराई पर तापमान में काफी अंतर है। सतह पर तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस तो 80mm की गहराई में माइनस 10°C था।
- चांद की सतह पर सल्फर खोजा: इसरो ने 29 अगस्त को बताया था कि रोवर पर लगे लिब्स पेलोड ने साउथ पोल पर सल्फर का पता लगाया है। इसके अलावा एल्युमीनियम, कैल्शियम, आयरन, क्रोमियम, टाइटेनियम, मैगनीज, सिलिकॉन और ऑक्सीजन का भी पता चला था।
- एक और पेलोड से सल्फर की पुष्टि: इसरो ने 31 अगस्त को बताया था कि रोवर पर लगे एक अन्य उपकरण अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोप (APXS) ने यहां सल्फर की पुष्टि की है। APXS ने इसके साथ ही कुछ अन्य माइनर एलिमेंट्स का भी पता लगाया था।
- रोवर और पेलोड का वाइब्रेशन रिकॉर्ड: इसरो ने 31 अगस्त को बताया था कि लैंडर पर लगे लूनर सिस्मिक एक्टिविटी पेलोड (ILSA) ने रोवर और अन्य पेलोड के मूवमेंट से हुए वाइब्रेशन को रिकॉर्ड किया। 26 अगस्त को चांद पर हुई एक अन्य घटना भी रिकॉर्ड की गई थी।
- चंद्रमा की सतह के पास प्लाज्मा कम घना: 31 अगस्त को इसरो ने बताया था लैंडर पर लगे लैंगम्यूर प्रोब (RAMBHA-LP) पेलोड ने साउथ पोल रीजन में लूनर प्लाज्मा वातावरण का पहला माप लिया था। इसमें पता चला कि चंद्रमा की सतह के पास प्लाज्मा कम घना है।
- विक्रम की दोबारा लैंडिंग कराई: इसरो ने 3 सितंबर को विक्रम लैंडर की चांद की सतह पर दोबारा लैंडिंग कराई थी। ISRO ने बताया कि लैंडर को 40 सेमी ऊपर उठाया गया और 30 से 40 सेमी की दूरी पर सुरक्षित लैंड करा दिया। इसे हॉप एक्सपेरिमेंट यानी जंप टेस्ट कहा।
विक्रम लैंडर की ये तस्वीर प्रज्ञान रोवर पर लगे दो नेविगेशन कैमरों की मदद से ली गई है। इसरो ने कहा- ये 3-चैनल वाली तस्वीर है।
इसरो ने 3 सितंबर को हॉप एक्सपेरिमेंट किया था और विक्रम लैंडर की चांद की सतह पर दोबारा लैंडिंग कराई थी।
चंद्रयान-3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग 4 फेज में हुई थी
ISRO ने 23 अगस्त को 30 किमी की ऊंचाई से शाम 5 बजकर 44 मिनट पर ऑटोमैटिक लैंडिंग प्रोसेस शुरू की और अगले 20 मिनट में सफर पूरा कर लिया था।
चंद्रयान-3 ने 40 दिन में 21 बार पृथ्वी और 120 बार चंद्रमा की परिक्रमा की। चंद्रयान ने चांद तक 3.84 लाख किमी दूरी तय करने के लिए 55 लाख किमी की यात्रा की।
1. रफ ब्रेकिंग फेज:
- लैंडर लैंडिंग साइट से 750 Km दूर था। ऊंचाई 30 Km और रफ्तार 6,000 Km/hr।
- ये फेज साढ़े 11 मिनट तक चला। इस दौरान विक्रम लैंडर के सेंसर्स कैलिब्रेट किए गए।
- लैंडर को हॉरिजॉन्टल पोजिशन में 30 Km की ऊंचाई से 7.4 Km दूरी तक लाया गया।
2. ऐटीट्यूड होल्डिंग फेज:
- विक्रम ने चांद की सतह की फोटो खींची और पहले से मौजूद फोटोज के साथ कंपेयर किया।
- चंद्रयान-2 के टाइम में ये फेज 38 सेकेंड का था इस बार इसे 10 सेकेंड का कर दिया गया था।
- 10 सेकेंड में विक्रम लैंडर की चंद्रमा से ऊंचाई 7.4 Km से घटकर 6.8 Km पर आ गई।
3. फाइन ब्रेकिंग फेज:
- ये फेज 175 सेकेंड तक चला जिसमें लैंडर की स्पीड 0 हो गई।
- विक्रम लैंडर की पोजिशन पूरी तरह से वर्टिकल कर दी गई।
- सतह से विक्रम लैंडर की ऊंचाई करीब 1 किलोमीटर रह गई
4. टर्मिनल डिसेंट:
- इस फेज में लैंडर को करीब 150 मीटर की ऊंचाई तक लाया गया।
- सब कुछ ठीक होने पर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंड कराया गया।
23 अगस्त को विक्रम लैंडर ने चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की थी।
चंद्रयान-3 मिशन 14 दिनों का ही क्यों?
चंद्रयान-3 मिशन 14 दिनों का ही था। ऐसा इसलिए क्योंकि चांद पर धरती के 14 दिन के बराबर एक दिन होता है। इतनी ही बड़ी रात होती है। यानी चंद्रमा पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक सूर्य की रोशनी रहती है। रात में चांद के साउथ पोल पर तापमान माइनस 200 डिग्री तक गिर जाता है।
रोवर-लैंडर सूर्य की रोशनी में तो पावर जनरेट कर सकते हैं, लेकिन रात होने पर पावर जनरेशन रुक जाता है। पावर जनरेशन रुकने से इलेक्ट्रॉनिक्स भयंकर ठंड झेल नहीं पाते और खराब हो सकते हैं। अमेरिका और रूस जैसे देश पावर के लिए न्यूक्लियर फ्यूल का भी इस्तेमाल करते हैं, इसलिए उनके मिशन ज्यादा समय तक चलते हैं।
चांद पर भारत का यह तीसरा मिशन था, पहले मिशन में पानी खोजा था
2008 में चंद्रयान-1 को लॉन्च किया गया था। इसमें एक प्रोब की क्रैश लैंडिंग कराई गई थी जिसमें चांद पर पानी के बारे में पता चला। फिर 2019 में चंद्रयान-2 चांद के करीब पहुंचा, लेकिन लैंड नहीं कर पाया। 23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 चांद पर लैंड कर गया। चांद पर सकुशल पहुंचने का संदेश भी चंद्रयान-3 ने भेजा। कहा- ‘मैं अपनी मंजिल पर पहुंच गया हूं।’
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चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही भारत ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन चुका है। चंद्रयान 3 मिशन का सबसे बड़ा उद्देश्य चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग की तकनीक को परखना और दर्शाना था। भारत इस मकसद में कामयाब हो चुका है। पढ़ें पूरी खबर…
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