जिला स्तरीय धरना जींद में 24 को
एस• के• मित्तल
सफीदों, हरियाणा पैक्स कर्मचारी महासंघ के आह्वान पर राज्य भर के पैक्स (प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां) कर्मचारी हड़ताल पर हैं जिसके कारण पैक्स संस्थाओं में इसके सदस्यों व सहकारी बैंक शाखाओं के साथ लेन देन प्रभावित हो रहा है।
सफीदों, हरियाणा पैक्स कर्मचारी महासंघ के आह्वान पर राज्य भर के पैक्स (प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां) कर्मचारी हड़ताल पर हैं जिसके कारण पैक्स संस्थाओं में इसके सदस्यों व सहकारी बैंक शाखाओं के साथ लेन देन प्रभावित हो रहा है।
इनकी काम छोड़ हड़ताल में ऋण वसूली बाधित हो गई है जबकि बीती खरीफ फसल के लिए सहकारी बैंकों से लेकर किसान सदस्यों को जारी किए गए ऋण की वसूली की अंतिम तारीख आगामी 15 फरवरी तय है। महासंघ के प्रतिनिधि, जिला के सबसे बड़े गांव मुवाना की पैक्स के कर्मचारी प्रताप सिंह व कृष्ण कुमार ने आज बताया कि सहकारी बैंकों में पदोन्नति के आदेश बिना शर्त जारी किए जाने, सहकारी समितियों से किसानों के तीन लाख की अल्पकालीन कृषि ऋण सीमा बनाए जाने, सहकारी समितियों से सहकारी बैंक को द्वारा नाजायज तौर पर वसूली जा रही ब्याज की राशि सहकारी समितियों को लौटाने, पैक्स दफ्तरों को ऑनलाइन करने तथा अनुकंपा आधार पर सर्विस के आदेश हरियाणा सरकार के आदेश के दिन से लागू करने की मांगों के साथ वे हड़ताल पर हैं।
प्रदेशभर में दिए जा रहे जिला स्तरीय धरनों की श्रृंखला में जिला जींद के कर्मचारी जींद के मिनी सचिवालय में 24 जनवरी को धरना देंगे। उन्होंने बताया कि एक तरफ तो सरकार पैक्सों को मल्टीपर्पज केंद्र बनाने का ढिंढोरा पीट रही है दूसरी तरफ इन्हें मिटाने की दिशा में काम कर रही है। कर्मचारियों का कहना था कि उनका आंदोलन कर्मचारियों व पैक्स, दोनों के आर्थिक शोषण के साथ-साथ किसानों की निरंतर अनदेखी के खिलाफ है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि वर्ष 2011 के बाद हर तीन वर्ष बाद रीवाइज होने के प्रावधान की पैक्स के सदस्यों की ऋण सीमा आज 11 साल तक भी नहीं बढ़ाई गई है जबकि इस अवधि में कृषि उत्पादन लागत में भारी बढ़ोतरी दर्ज हो चुकी है। उन्होंने जोड़ा कि वर्ष 2011 से प्रति एकड़ 17400 रुपये की अधिकतम ऋण सीमा के अनुसार ऋण जारी किए जा रहे हैं जबकि डीएपी खाद का जो कट्टा वर्ष 2011 में मात्र 467 रुपये का था आज 1350 रुपये का है।
उन्होंने बताया कि मुवाना पैक्स में कुल 6253 सदस्यों में एक हजार सदस्य ऐसे किसान हैं जो पिछले एक दशक के दौरान इस पैक्स के सदस्य तो बन गए लेकिन उनकी अधिकतम ऋण सीमा निर्धारित ना होने से उन्हें आज तक ऋण जारी नहीं किया जा सका है। कर्मचारियों के शोषण बारे उन्होंने कहा कि अनेक जगह एक स्थान व एक ही पद पर एक समान समय अनुभव के 2 कर्मचारियों के वेतन में भारी अंतर है। विभागीय नीतियों के कारण कर्मचारियों का निरंतर शोषण किया जा रहा है।
यूं हो रहा पैक्स को घाटा:
उन्होंने बताया कि पैक्स सहकारी बैंक से लेकर 6 माह के लिए फसली ऋण अपने सदस्य किसानों को देता है जिसपर 7 प्रतिशत ब्याज वसूल करता है। इसमें 4 प्रतिशत ब्याज राशि की भरपाई राज्य सरकार तथा 3 प्रतिशत की भरपाई केंद्र सरकार करती है। इन कर्मचारियों का कहना था कि पैक्स अपने ऋणियों का छैमाही ऋणों पर ब्याज समय पर माफ कर इसकी सूची राज्य व केंद्र को भेज देता है जबकि उसे राज्य व केंद्र सरकार से ब्याज की राशि का भुगतान कई बार तो दो-दो वर्ष तक नहीं मिलता।
यूं हो रहा पैक्स को घाटा:
उन्होंने बताया कि पैक्स सहकारी बैंक से लेकर 6 माह के लिए फसली ऋण अपने सदस्य किसानों को देता है जिसपर 7 प्रतिशत ब्याज वसूल करता है। इसमें 4 प्रतिशत ब्याज राशि की भरपाई राज्य सरकार तथा 3 प्रतिशत की भरपाई केंद्र सरकार करती है। इन कर्मचारियों का कहना था कि पैक्स अपने ऋणियों का छैमाही ऋणों पर ब्याज समय पर माफ कर इसकी सूची राज्य व केंद्र को भेज देता है जबकि उसे राज्य व केंद्र सरकार से ब्याज की राशि का भुगतान कई बार तो दो-दो वर्ष तक नहीं मिलता।
यह भी बताया कि प्रदेश भर में पैक्स संस्थाओं से सहकारी बैंकों द्वारा चक्रवृद्धि के रूप में नाजायज ब्याज वसूल किया जा रहा है जिसके कारण प्रदेश के लगभग 90 प्रतिशत पैक्स भारी घाटे में है। स्थिति यह है कि गलत नीतियों के कारण स्टाफ कम पड़ गया है औऱ सदस्यों को दिए गए ऋण की राशि भी करीब आधी रह गई है तो ऐसे में पैक्स का घाटे में जाना स्वाभाविक ही है।