फसल अवशेष प्रबंधन की मशीन को लेकर किसान से बातचीत करते डीसी व अन्य।
प्रदेश में अधिक धान उत्पादन वाले जिलों में करनाल का नाम पहले तीन में है लेकिन सात साल से CM सिटी का ताज पहने इस जिले में अभी तक पराली का प्रबंधन नहीं किया जा सका है। पिछले वर्षों की तरह एक बार फिर पराली जलाने के मामलों ने तेजी पकड़नी शुरू कर दी है।
विभाग की ओर से 20 मामलों की पुष्टि की गई लेकिन असली आंकड़े अधिकारी भी सामने आने नहीं दे रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपये की मशीनरी बांटने वाला कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की दस्तावेजी कार्रवाई का नतीजा है कि पराली प्रबंधन पर जागरूकता और चेतावनी बेअसर है। अपनी साख बचाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों का जिस तरह मंडियों के दौरे फौरे साबित हुए हैं ऐसे ही खेतों में पराली प्रबंधन पर उतरे अधिकारी कमजोर दिख रहे हैं। अगर किसानों को अच्छे से जागरूक किया जाता, या फिर फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर उन्हें समय पर सुविधाएं उपलब्ध हो जाती तो ये परिणाम सामने नहीं आते।
करनाल में बेअसर पराली प्रबंधन: अब तक 20 मामले आए सामने, किसानों का आरोप चहेतों को दी जा रही सुविधाएं
धान के अवशेषों में लगी आग का दृश्य।
जिला में चार लाख एकड़ में धान की बिजाई
विभाग से मिली जानकारी के अनुसार के करनाल जिले में इस बार करीब 4 लाख एकड़ में धान की बिजाई की गई है। इस समय धान की कटाई जोरो पर है। अक्टूबर माह में तकरीबन सभी धान पक कर तैयार हो जाती है। ऐसे में किसान जागरूकता व सुविधाओं के अभाव में फसल अवशेष प्रबंधन की तरफ न जाकर अवशेषों को जलाकर खेत को अगली फसल के लिए तैयार करना चाहता है।
चहेते किसानों को मिलती है सुविधांए
नरूखेड़ी निवासी किसान यश पाल व सुखीराम का कहना है कि सरकार द्वारा कई कृषि यंत्रों पर सब्सिडी दी जाती है। यह सुविधा केवल चहेते किसानों को और बड़े जमीदारों को दी जाती है। मध्यम किसानों को यह सुविधा नहीं दी जाती। अगर कोई मध्यम वर्ग का किसान इन सुविधाओं को लेने के लिए विभाग में जाता है तो विभाग के अधिकारी व कर्मचारी ऐसे कागजात मांग लेते है जो पूरा करना किसी गरीब व मध्यम वर्ग के किसान के बस की बात नहीं है। विभाग के अधिकारी की मिलीभगत के चलते अपने चहेतों को सरकार की सुविधाएं दी जाती है।
धान अवशेषों में लगी आग से निकलता धुंआ।
जिला में चार लाख क्विंटल पराली के प्रबंधन का दावा
पानीपत आईओसी को दो लाख क्विंटल पराली एथेनॉल की बात की जा रही है और दो लाख क्विंटल शहर की दस औद्योगिक इकाइयों को दी जानी है जबकि दो लाख क्विंटल पराली किसानों को प्रबंधन के लिए जागरूक किया जाना था। लेकिन इसमें प्रशासनिक अधिकारी कमजोर दिखाई दे रहे है।
कृषि संयंत्र समय नहीं होते उपलब्ध
पराली में आग लगाने के पीछे किसान अपना अलग ही तर्क बताते है। किसानों की माने तो परंपरागत तरीके से फानों को नष्ट करने में बहुत ही अधिक समय लगता है और जो कृषि संयंत्र है वे समय पर उपलब्ध नहीं हो पाते और उन्हें अगली फसल लेने के लिए भी खेत तैयार करना होता है और परंपरागत तरीके से फसल अवशेष प्रबंधन में समय ज्यादा लगता है और इसी से बचने के लिए किसान पराली में आग लगाता है।
वर्जन
अब तक 20 मामले आ चुके सामने
कृषि विभाग के उपनिदेशक आदित्य प्रताप डबास की माने तो इस बार शुक्रवार देर रात शाम तक 20 मामले आगजनी के सामने आ चुके है। इन में से 10 किसानों पर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। शुक्रवार को गांव टपराना में एक किसान ने फसल अवशेषों में आग लगाई थी। विभाग द्वारा किसान के खिलाफ उचित कार्रवाई भी की गई है। वहीं विभाग की तरफ से कई टीमें गठित की गई है। जो किसानों को जागरूक करने का काम कर रही है।
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