देश के तमाम शहर बढ़ते वायु प्रदूषण से परेशान हैं। इसे काबू करने की कोशिशें भी कर रहे हैं, लेकिन ये कोशिशें नाकाफी साबित हो रही हैं। इस बीच, सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (CSE) की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि देश के 74% शहरों के पास यह डेटा ही नहीं है कि उनके शहर में निर्माण और तोड़फोड़ संबंधी गतिविधियों से कितना मलबा निकलता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनकैप) के तहत नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड को हासिल करने में लगातार नाकाम रहने वाले 131 नॉन-अटेन्मेंट शहरों में से केवल 35 ने ही निर्माण और तोड़फोड़ संबंधी मलबे को ठिकाने लगाने की योजना बनाई है। जबकि एनकैप के तहत धूल कणों के प्रदूषण को काबू करने के लिए सभी शहरों को अपने क्लीन एयर एक्शन प्लान और माइक्रो एक्शन प्लान तैयार करने थे।
35 शहरों में रोज 6563 टन मलबा निकल रहा
पोर्टल फॉर रेगुलेशन ऑफ एयर पॉल्यूशन इन नॉन-अटेन्मेंट सिटीज (प्राण) के मुताबिक, केवल 35 यानी एक चौथाई ने ही प्राण पोर्टल पर अपनी योजनाएं अपलोड की हैं। इनमेंे रोज 6563.48 टन मलबा पैदा होता है। अकेले दिल्ली 3448 टन पैदा करता है। अहमदाबाद में 1000 टन, फरीदाबाद व नोएडा में 300-300 टन और गाजियाबाद में 280 टन पैदा हो रहा है। निराशाजनक स्थिति ये है कि केवल 12 शहर ही रिसाइकिलिंग के लिए 2019 टन मलबा रोज उठाते हैं।
देश में निर्माण सामग्री की खपत वैश्विक औसत से 4 गुना
CSE के रजनीश सरीन के मुताबिक निर्माण गतिविधियों से निकले धूलकण वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं। दूसरी ओर निर्माण सामग्री की मांग के चलते खनन गतिविधियां बढ़ती हैं। देश में निर्माण सामग्री की खपत की दर 1580 टन प्रति एकड़ है जो दुनिया के औसत खपत 450 टन प्रति एकड़ से चार गुना है। सामग्री की रिसाइक्लिंग दर भी भारत में 20 फीसदी तक है जबकि यूरोप में यह दर 70 फीसदी से ऊपर है।
131 शहरों को धूल कण प्रदूषण 30% लाने का लक्ष्य
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम में लक्ष्य है कि वर्ष 2026 तक 131 नॉन-एटेन्मेंट शहरों को धूल कणों के प्रदूषण में 40% तक कम करना है। 2024 तक सभी शहरों को धूल कणों के प्रदूषण को 20-30% के बीच लाना है। शहरों को वेस्ट को रिसाइकिल के प्लांट चालू करने की टाइमलाइन दी गई थी। 131 शहरों में से केवल 53 शहरों ने ही स्थिति की जानकारी दी। सिर्फ 12 में ही प्लांट चालू हालत में है।