इंसान को अंदर व बाहर से एक समान रहना चाहिए: बहन सुनीता

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त्रिदिवसीय राजयोग शिविर का हुआ शुभारंभ

एस• के• मित्तल     
सफीदों,        नगर के प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सफीदों के तत्वावधान में मंगलवार को त्रिदिवसीय राजयोग शिविर का शुभारंभ हो गया। समारोह की अध्यक्षता प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय पानीपत सैंटर से आई ब्रह्माकुमारी बहन सुनीता ने की। सफीदों सैंटर की ब्रह्माकुमारीज ने बहन सुनीता का बुके देकर अभिनंदन किया। प्रात:कालीन सत्र में खुद से मुलाकात विषय पर बोलते हुए बहन सुनीता ने कहा कि आज के दौर में खुद के बारे में कोई जानने का प्रयास नहीं करता और दूसरों को जानने की कोशिश जरूर करता है।
मनुष्य को अपने अंदर झांकना होगा। अगर इंसान खुद के बारे में जान ले तो उसे उसके सभी प्रश्रों का हल मिल जाएगा। आज इंसान को खुद से प्यार करने की जरूरत है। इंसान के पास अपने लिए समय नहीं है और जमाने भर का वह अपने ऊपर बोझ उठाए हुए है। मनुष्य को इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि वह इस संसार में क्यों आया है। उन्होंने कहा कि हर आदमी को सुबह उठकर अच्छा चिंतन करके अच्छे संकल्प लेने चाहिए। सुबह का पहला विचार ही जीवन की दिनचर्या का आधार है।
सुबह उठकर हमें विचार करना चाहिए कि आज मेरा खुशियों भरा दिन है, आज मेरा प्रभू मिलन का दिन है, आज मेरा दुआओं भरा दिन है, आज मेरा सहयोग का दिन है, आज मेरा विजय का दिन है, आज मेरा परमात्मा की छत्रछाया का दिन है और आज मेरा शक्तियों भरा दिन है। अगर मनुष्य ये सब सुविचार सुबह उठकर धारण कर लेगा तो उस जैसा खुशहाल इंसान इस दुनिया में कोई भी नहीं हो सकता। अच्छे विचारों से ही जीवन में सुख मिल सकता है। कोई भी आपसे से पूछे कि कैसे हो तो उसको यह कहो कि मैं बेहद खुश हुं और आनंद से भरा हुं। परमपिता परमात्मा की मेरे ऊपर असीम अनुकंपा है। उन्होंने कहा कि आज समय की मांग यह भी है कि मनुष्य अपनी कथनी व करनी में अंतर करना बंद करे। प्राय: देखने में आता है कि मनुष्य ऊपर से कहता और करता कुछ है लेकिन वह अंदर से कुछ ओर होता है। मनुष्य की इसी सोच के कारण आत्माएं खाली हो चुकी है।
वहीं मनुष्य शारीरिक रूप से कम मानसिक रूप से अधिक बीमार हो गया है। समाज में दिखावे की नहीं बल्कि आत्मिक प्यार की जरूरत है। परिवारों में प्यार, सम्मान और दुआओं की जरूरत है तथा बच्चों को संस्कार देने की आवश्यकता है। केवल दुआओं के माध्यम से ही बिगड़ी हुई आत्माओं को सुधारा जा सकता है। अच्छा दिखने व बनने में एक बहुत बड़ा अंतर होता है। समाज को साफ-सुथरी आत्माओं और दिखावे से दूर रहने वाले लोगों की जरूरत है। अगर मनुष्य को सुखी रहना है तो उसे अंदर व बाहर एक समान रहना व दिखना चाहिए।
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