मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है: बचपन में मुनव्वर कम्युनिस्ट बने तो पिता ने घर से निकाल दिया, मां पर शायरियां लिखकर दुनिया में छा गए

 

…तो अब इस गांव से रिश्ता हमारा खत्म होता है, फिर आंखे खोली जाए कि सपना खत्म होता है। मशहूर उर्दू शायर मुनव्वर राणा की यह लाइन आज सच साबित हो गई। 71 साल की उम्र में मुनव्वर राणा दुनिया को अलविदा कह गए। वह अब हमारे बीच नहीं होंगे लेकिन उनकी कहानी, उनकी शायरियां हमारे बीच जिंदा रहेंगी। सांस्कृतिक मंचो पर उनका नाम लेकर लोग मां का बखान करते रहेंगे। क्योंकि मुनव्वर ने मां के लिए जो प्रेम दिखाया और लिखा वह आज अमर हो गई।

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आज हम मुनव्वर राणा की कहानी जानेंगे। उनके जीवन के कुछ

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