“हिंदू धर्म केवल धोखा है”…यह शब्द सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य के हैं। स्वामी अगली लाइन में कहते हैं, “ब्राह्मण धर्म को हिंदू धर्म कहकर इस देश के दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों को धर्म के मकड़जाल में फंसाने की एक साजिश है।” स्वामी प्रसाद इसके पहले रामचरितमानस की चौपाइयों पर सवाल उठा चुके हैं। हालांकि उनका हिंदू विरोध बहुत पुराना नहीं है। पिछले साल तक वह राम, कृष्ण और गणेश की मूर्तियां स्वीकार करते थे। मूर्तियों के सामने दीपक जलाते थे।
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अब सवाल है कि क्या सच में हिंदू धर्म जैसा कुछ नहीं है? क्या हिंदू धर्म धोखा है? क्या लोगों को साजिश के तहत फंसाया जा रहा? ऐसे कई सवाल हैं। आज उन सबके जवाब जानेंगे। हम यह भी जानेंगे कि हिंदू धर्म की शुरुआत कहां से हुई? हिंदू मंदिरों पर कितने हमले हुए? किसने हमले किए? आइए एक तरफ से जानते हैं…
पारसियों की किताब में पहली बार हिंदू शब्द का जिक्र
हिंदू धर्म की शुरुआत कब हुई? पहली बार इसका नाम कब आया? इसकी कहीं भी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। हर इतिहासकार इसे लेकर अलग-अलग दावा करते हैं। जो सबसे मजबूत दावा है वह यह कि 1500 ईसा पूर्व यानी आज से करीब 3500 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता थी। वहां पहली बार आर्यों ने अविस्तक धर्म की स्थापना की। भाषा के जानकार मानते हैं कि हिंद-आर्य भाषाओं की ‘स’ ध्वनि ईरान में ‘ह’ ध्वनि में बदल जाती है। इसलिए सप्त सिंधु अवेस्तन भाषा में जाकर हप्त हिंदू में बदल गया। यही वजह है कि ईरानियों ने सिंधु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिंदू नाम दिया। लेकिन पाकिस्तान के सिंध प्रांत में लोगों को आज भी सिंध या फिर सिंधु कहा जाता है।
ईरानी अर्थात पारस्य देश के पारसियों की धर्म पुस्तक अवेस्ता में हिंदू शब्द की चर्चा है। सिंधु घाटी सभ्यता में ही ऋग्वेद लिखा गया। वेद मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। इस वक्त वेदों की 28 हजार पांडुलिपि पुणे के ‘भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में रखी हुई हैं। ऋग्वेद में सूर्य, आकाश और अग्नि जैसे देवताओं की प्रशंसा मिलती है। मंदिर की कोई चर्चा नहीं है। यज्ञ की बात होती है। हालांकि उस वक्त धर्म शब्द का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। करीब 1000 से 500 ईसा पूर्व में पुराण अस्तित्व में आए। इसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे देवताओं की बात लिखी गई।
- हिंदू धर्म के बाद 2000 ईसा पूर्व में यहूदी धर्म, 500 ईसा पूर्व बौद्ध और जैन धर्म की शुरुआत हुई। 2000 साल पहले ईसाई और फिर 1400 साल पहले इस्लाम धर्म की शुरुआत हुई।
बौद्ध ने टीले बनवाए, हिंदुओं ने मंदिर
करीब 700 से 500 ईसा पूर्व में बौद्ध और जैन धर्म की शुरुआत हुई। बौद्ध और जैनियों ने अपने उपदेशकों की याद में टीले बनवाए। यह देखकर हिंदुओं को भी मंदिर बनाने की प्रेरणा मिली। इतिहासकार नीरद सी. चौधरी कहते हैं कि मूर्ति पूजा का जो सबसे पुराना संकेत मिलता है, वह 400 ईसा पूर्व का है। माइथोलॉजिस्ट देवदत्त पटनायक का मानना है कि बड़े किसानों ने सबसे पहले मंदिर का निर्माण शुरू किया। ब्राह्मणों के जरिए इसके रखरखाव के लिए अलग से जमीन दी।
इतिहासकार मनु वी. देवदेवन कहते हैं कि करीब 700 ईसवी में कांचीपुरम के पल्लव, बादामी के चालुक्य और अन्य राजशाही राज्यों में मंदिर निर्माण पर बढ़ावा देना शुरू किया। 1000 से 1200 ईसवी के बीच तो हर शहर हर कस्बे में एक से अधिक मंदिर हो गए। मंदिर बढ़े तो लूट भी बढ़ी। इसे हम ग्राफिक से समझते हैं।
किसी को आने या छोड़ने के लिए बाध्य नहीं करता हिंदू धर्म
हिंदू धर्म किसी को फंसाने का माध्यम नहीं है। अगर कोई धर्म छोड़ना चाहता है, तो उसे पूरी स्वतंत्रता है। अगर कोई इस धर्म में आना चाहता है, तो वह भी आ सकता है। इसके दो माध्यम हैं। पहलाः संविधान में दर्ज कानूनी अधिकार के रूप से वह धर्म परिवर्तन कर सकता है। दूसराः किसी हिंदू मंदिर में जाकर अनुष्ठान और शुद्धिकरण मंत्रों से हिंदू बन सकता है। अभी तक कोई ऐसी मिशनरी सामने नहीं आई, जो किसी को प्रेशर देकर हिंदू बनाने का काम करती हो।
धर्म बना, तो उसमें जातियां भी बनीं। जाति के आधार पर काम बांटे गए। लेकिन धीरे-धीरे दलित वर्ग की संख्या इतनी बढ़ गई कि उन्हें किसी एक खास पेशे में बांधे रखना असंभव हो गया। वह अलग-अलग काम करने लगे। 1850 से 1936 तक अंग्रेजी हुकूमत दलित-आदिवासी और पिछड़ों को दबे-कुचले वर्ग के नाम से बुलाती थी। 1931-32 में गोलमेज सम्मेलन के बाद अंग्रेजों ने समाज को सांप्रदायिक तौर पर बांटा और अछूत जातियों के लिए एक अलग अनुसूची बनाई। 1950 में जब देश आजाद हुआ, तो यही अनुसूची संविधान का हिस्सा बन गई।
संविधान के अनुच्छेद 15-16 तथा 29 में विशेष रूप से स्पष्ट किया गया कि धर्म, वर्ण, जाति, लिंग अथवा जन्म-स्थान के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
- अब फिर से स्वामी प्रसाद मौर्य पर लौटते हैं। सवाल है कि क्या वह पहले से हिंदू विरोध की बात करते हैं?
पिछले साल राम-कृष्ण की मूर्तियां थामें दिखते थे स्वामी
2016 तक स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा के टॉप नेताओं में शामिल थे। सदन में नेता प्रतिपक्ष थे। मायावती पर पैसा लेकर टिकट देने का आरोप लगाते हुए बीजेपी में शामिल हो गए। विधायक बने और फिर योगी सरकार में मंत्री। अब जहां भी प्रचार में जाते, स्वागत में कभी भगवान राम की मूर्ति मिलती तो कभी कृष्ण की। हर बार हंसते हुए उसे अपने हाथ में लिया और फोटो खिंचवाई। साथी नेता जय श्रीराम का नारा लगाते, तो स्वामी प्रसाद भी नारा लगाते थे। इन 5 सालों में उन्होंने कभी भी हिंदू धर्म की आलोचना नहीं की।
चंडीगढ में चोरी और स्नेचिंग के मामलों में चार गिरफ्तार: दो मोटरसाइकिल सहित तीन मोबाइल फोन बरामद, आरोपियों में एक नाबालिक भी शामिल
ये सभी फोटो 2021 की हैं। उस वक्त स्वामी प्रसाद हिंदू धर्म के देवताओं की मूर्तियां खुशी-खुशी स्वीकार करते थे।
जनवरी, 2022 में स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा छोड़ दी। सपा में शामिल हो गए। पार्टी ने उन्हें कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से प्रत्याशी बनाया। बीजेपी के सुरेंद्र कुशवाहा ने उन्हें 45 हजार वोट के बड़े अंतर से चुनाव हरा दिया। चुनाव के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य के सुर बदल गए। धर्म को लेकर उन्होंने मंचों से टिप्पणी शुरू की। चुनाव के बाद उन्होंने कहा कि सबसे पुराना धर्म बौद्ध है। उसके बाद ईसाई और फिर इस्लाम आया। उनकी बातों से हिंदू धर्म गायब था।
फरवरी, 2023 में स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बकवास बताया। उनके समर्थन में अखिल भारतीय ओबीसी महासभा ने पहले विरोध-प्रदर्शन किया और फिर रामचरितमानस की प्रतियां जलाईं। इसे लेकर लखनऊ में उनके खिलाफ आईपीसी धारा 295 ए, 298, 504 और 153 के तहत केस दर्ज किया गया। इन धाराओं में 7 साल की सजा का प्रावधान है। हालांकि स्वामी प्रसाद मौर्य की कोई गिरफ्तारी नहीं हुई।
पार्टी के प्रवक्ता डिफेंड नहीं कर पा रहे
स्वामी प्रसाद के बयानों को सपा के प्रवक्ता टीवी पर डिफेंड नहीं कर पा रहे। इसलिए वह मौर्य का निजी बयान बताकर आगे बढ़ जाते हैं। हिंदू धर्म को धोखा बताने के स्वामी के बयान पर सपा प्रवक्ता आईपी सिंह ने कहा, “उन्हें ऐसे धार्मिक मुद्दों पर बोलने से बचना चाहिए। आपने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया है, तो इसका कतई मतलब नहीं कि आप हिंदू धर्म की आलोचना करें। बीजेपी में 5 साल रहे, तब ये मुद्दे नहीं उठाए। ऐसे विचारों से पार्टी हरगिज सहमत नहीं।”
फिलहाल स्वामी प्रसाद के बयानों से सपा के सवर्ण नेता बैकफुट पर नजर आते हैं। प्रवक्ता इनके बयानों को लेकर टीवी पर बोलने से बचते हैं। सोशल मीडिया पर समर्थक खुली आलोचना कर रहे हैं। दूसरी तरफ, विपक्षी पार्टी के नेताओं को सपा को हिंदू विरोधी बताने का मौका मिल गया। स्वामी के बयानों से पार्टी को कितना फायदा और कितना नुकसान होगा यह वक्त बताएगा। आखिर में स्वामी प्रसाद मौर्य के राजनीतिक करियर से जुड़ा यह ग्राफिक देखिए।
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क्या हिंदू धर्म धोखा या फंसाने की साजिश है?: 3500 साल पुराना है इतिहास, पिछले साल तक राम-कृष्ण की मूर्तियां थामे दिखते थे स्वामी प्रसाद
“हिंदू धर्म केवल धोखा है”…यह शब्द सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य के हैं। स्वामी अगली लाइन में कहते हैं, “ब्राह्मण धर्म को हिंदू धर्म कहकर इस देश के दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों को धर्म के मकड़जाल में फंसाने की एक साजिश है।” स्वामी प्रसाद इसके पहले रामचरितमानस की चौपाइयों पर सवाल उठा चुके हैं। हालांकि उनका हिंदू विरोध बहुत पुराना नहीं है। पिछले साल तक वह राम, कृष्ण और गणेश की मूर्तियां स्वीकार करते थे। मूर्तियों के सामने दीपक जलाते थे।
मणिपुर में फिर गोलीबारी, 2 दो वॉलंटियर्स की मौत: बिष्णुपुर-चुराचांदपुर बॉर्डर पर हमलावरों ने किसानों को निशाना बनाया, 7 घायल
अब सवाल है कि क्या सच में हिंदू धर्म जैसा कुछ नहीं है? क्या हिंदू धर्म धोखा है? क्या लोगों को साजिश के तहत फंसाया जा रहा? ऐसे कई सवाल हैं। आज उन सबके जवाब जानेंगे। हम यह भी जानेंगे कि हिंदू धर्म की शुरुआत कहां से हुई? हिंदू मंदिरों पर कितने हमले हुए? किसने हमले किए? आइए एक तरफ से जानते हैं…
पारसियों की किताब में पहली बार हिंदू शब्द का जिक्र
हिंदू धर्म की शुरुआत कब हुई? पहली बार इसका नाम कब आया? इसकी कहीं भी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। हर इतिहासकार इसे लेकर अलग-अलग दावा करते हैं। जो सबसे मजबूत दावा है वह यह कि 1500 ईसा पूर्व यानी आज से करीब 3500 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता थी। वहां पहली बार आर्यों ने अविस्तक धर्म की स्थापना की। भाषा के जानकार मानते हैं कि हिंद-आर्य भाषाओं की ‘स’ ध्वनि ईरान में ‘ह’ ध्वनि में बदल जाती है। इसलिए सप्त सिंधु अवेस्तन भाषा में जाकर हप्त हिंदू में बदल गया। यही वजह है कि ईरानियों ने सिंधु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिंदू नाम दिया। लेकिन पाकिस्तान के सिंध प्रांत में लोगों को आज भी सिंध या फिर सिंधु कहा जाता है।
ईरानी अर्थात पारस्य देश के पारसियों की धर्म पुस्तक अवेस्ता में हिंदू शब्द की चर्चा है। सिंधु घाटी सभ्यता में ही ऋग्वेद लिखा गया। वेद मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। इस वक्त वेदों की 28 हजार पांडुलिपि पुणे के ‘भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में रखी हुई हैं। ऋग्वेद में सूर्य, आकाश और अग्नि जैसे देवताओं की प्रशंसा मिलती है। मंदिर की कोई चर्चा नहीं है। यज्ञ की बात होती है। हालांकि उस वक्त धर्म शब्द का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। करीब 1000 से 500 ईसा पूर्व में पुराण अस्तित्व में आए। इसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे देवताओं की बात लिखी गई।
बौद्ध ने टीले बनवाए, हिंदुओं ने मंदिर
करीब 700 से 500 ईसा पूर्व में बौद्ध और जैन धर्म की शुरुआत हुई। बौद्ध और जैनियों ने अपने उपदेशकों की याद में टीले बनवाए। यह देखकर हिंदुओं को भी मंदिर बनाने की प्रेरणा मिली। इतिहासकार नीरद सी. चौधरी कहते हैं कि मूर्ति पूजा का जो सबसे पुराना संकेत मिलता है, वह 400 ईसा पूर्व का है। माइथोलॉजिस्ट देवदत्त पटनायक का मानना है कि बड़े किसानों ने सबसे पहले मंदिर का निर्माण शुरू किया। ब्राह्मणों के जरिए इसके रखरखाव के लिए अलग से जमीन दी।
इतिहासकार मनु वी. देवदेवन कहते हैं कि करीब 700 ईसवी में कांचीपुरम के पल्लव, बादामी के चालुक्य और अन्य राजशाही राज्यों में मंदिर निर्माण पर बढ़ावा देना शुरू किया। 1000 से 1200 ईसवी के बीच तो हर शहर हर कस्बे में एक से अधिक मंदिर हो गए। मंदिर बढ़े तो लूट भी बढ़ी। इसे हम ग्राफिक से समझते हैं।
किसी को आने या छोड़ने के लिए बाध्य नहीं करता हिंदू धर्म
हिंदू धर्म किसी को फंसाने का माध्यम नहीं है। अगर कोई धर्म छोड़ना चाहता है, तो उसे पूरी स्वतंत्रता है। अगर कोई इस धर्म में आना चाहता है, तो वह भी आ सकता है। इसके दो माध्यम हैं। पहलाः संविधान में दर्ज कानूनी अधिकार के रूप से वह धर्म परिवर्तन कर सकता है। दूसराः किसी हिंदू मंदिर में जाकर अनुष्ठान और शुद्धिकरण मंत्रों से हिंदू बन सकता है। अभी तक कोई ऐसी मिशनरी सामने नहीं आई, जो किसी को प्रेशर देकर हिंदू बनाने का काम करती हो।
धर्म बना, तो उसमें जातियां भी बनीं। जाति के आधार पर काम बांटे गए। लेकिन धीरे-धीरे दलित वर्ग की संख्या इतनी बढ़ गई कि उन्हें किसी एक खास पेशे में बांधे रखना असंभव हो गया। वह अलग-अलग काम करने लगे। 1850 से 1936 तक अंग्रेजी हुकूमत दलित-आदिवासी और पिछड़ों को दबे-कुचले वर्ग के नाम से बुलाती थी। 1931-32 में गोलमेज सम्मेलन के बाद अंग्रेजों ने समाज को सांप्रदायिक तौर पर बांटा और अछूत जातियों के लिए एक अलग अनुसूची बनाई। 1950 में जब देश आजाद हुआ, तो यही अनुसूची संविधान का हिस्सा बन गई।
संविधान के अनुच्छेद 15-16 तथा 29 में विशेष रूप से स्पष्ट किया गया कि धर्म, वर्ण, जाति, लिंग अथवा जन्म-स्थान के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
पिछले साल राम-कृष्ण की मूर्तियां थामें दिखते थे स्वामी
2016 तक स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा के टॉप नेताओं में शामिल थे। सदन में नेता प्रतिपक्ष थे। मायावती पर पैसा लेकर टिकट देने का आरोप लगाते हुए बीजेपी में शामिल हो गए। विधायक बने और फिर योगी सरकार में मंत्री। अब जहां भी प्रचार में जाते, स्वागत में कभी भगवान राम की मूर्ति मिलती तो कभी कृष्ण की। हर बार हंसते हुए उसे अपने हाथ में लिया और फोटो खिंचवाई। साथी नेता जय श्रीराम का नारा लगाते, तो स्वामी प्रसाद भी नारा लगाते थे। इन 5 सालों में उन्होंने कभी भी हिंदू धर्म की आलोचना नहीं की।
चंडीगढ में चोरी और स्नेचिंग के मामलों में चार गिरफ्तार: दो मोटरसाइकिल सहित तीन मोबाइल फोन बरामद, आरोपियों में एक नाबालिक भी शामिल
ये सभी फोटो 2021 की हैं। उस वक्त स्वामी प्रसाद हिंदू धर्म के देवताओं की मूर्तियां खुशी-खुशी स्वीकार करते थे।
जनवरी, 2022 में स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा छोड़ दी। सपा में शामिल हो गए। पार्टी ने उन्हें कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से प्रत्याशी बनाया। बीजेपी के सुरेंद्र कुशवाहा ने उन्हें 45 हजार वोट के बड़े अंतर से चुनाव हरा दिया। चुनाव के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य के सुर बदल गए। धर्म को लेकर उन्होंने मंचों से टिप्पणी शुरू की। चुनाव के बाद उन्होंने कहा कि सबसे पुराना धर्म बौद्ध है। उसके बाद ईसाई और फिर इस्लाम आया। उनकी बातों से हिंदू धर्म गायब था।
फरवरी, 2023 में स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बकवास बताया। उनके समर्थन में अखिल भारतीय ओबीसी महासभा ने पहले विरोध-प्रदर्शन किया और फिर रामचरितमानस की प्रतियां जलाईं। इसे लेकर लखनऊ में उनके खिलाफ आईपीसी धारा 295 ए, 298, 504 और 153 के तहत केस दर्ज किया गया। इन धाराओं में 7 साल की सजा का प्रावधान है। हालांकि स्वामी प्रसाद मौर्य की कोई गिरफ्तारी नहीं हुई।
पार्टी के प्रवक्ता डिफेंड नहीं कर पा रहे
स्वामी प्रसाद के बयानों को सपा के प्रवक्ता टीवी पर डिफेंड नहीं कर पा रहे। इसलिए वह मौर्य का निजी बयान बताकर आगे बढ़ जाते हैं। हिंदू धर्म को धोखा बताने के स्वामी के बयान पर सपा प्रवक्ता आईपी सिंह ने कहा, “उन्हें ऐसे धार्मिक मुद्दों पर बोलने से बचना चाहिए। आपने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया है, तो इसका कतई मतलब नहीं कि आप हिंदू धर्म की आलोचना करें। बीजेपी में 5 साल रहे, तब ये मुद्दे नहीं उठाए। ऐसे विचारों से पार्टी हरगिज सहमत नहीं।”
फिलहाल स्वामी प्रसाद के बयानों से सपा के सवर्ण नेता बैकफुट पर नजर आते हैं। प्रवक्ता इनके बयानों को लेकर टीवी पर बोलने से बचते हैं। सोशल मीडिया पर समर्थक खुली आलोचना कर रहे हैं। दूसरी तरफ, विपक्षी पार्टी के नेताओं को सपा को हिंदू विरोधी बताने का मौका मिल गया। स्वामी के बयानों से पार्टी को कितना फायदा और कितना नुकसान होगा यह वक्त बताएगा। आखिर में स्वामी प्रसाद मौर्य के राजनीतिक करियर से जुड़ा यह ग्राफिक देखिए।
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