कभी कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने समाज की माँगों को लेकर राजस्थान में ट्रेनें रोक दी थीं, अब पंजाब के किसानों ने रेल रोको आंदोलन छेड़ दिया है। पंजाब से गुजरने वाली कई ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं। किसानों की मुख्य माँग वही है न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) अनिवार्य करना। इसके अलावा बाढ़ और बरसात से फसलों को हुए नुक़सान का वे मुआवज़ा भी माँग रहे हैं।
किसानों का कहना है कि कई जगह तो गिरदावरी तक नहीं हुई है। कुछ किसानों को मुआवज़ा दिया भी है तो ऊँट के मुँह में जीरे के बराबर। अब समझना यह है कि ये एमएसपी का मामला क्या है? किसान चाहते हैं कि उनकी फसल या अनाज जो भी ख़रीदे, सरकार या फिर व्यापारी, उसका भाव एमएसपी से कम नहीं होना चाहिए। होता यह है कि सरकार तो अनाज एमएसपी पर ही ख़रीदती है लेकिन वह पूरी उपज तो ख़रीद नहीं सकती।
किसान मजबूरी में व्यापारियों को भी अपनी उपज बेचता है। व्यापारी एमएसपी से बहुत नीचे भाव पर ख़रीदी करता है क्योंकि जिन किसानों को तुरंत पैसे की ज़रूरत होती है, अक्सर वे ही व्यापारी को अपनी उपज बेचते हैं। व्यापारी किसान की इस ज़रूरत का फ़ायदा उठाते हैं। फिर बाज़ार में महंगे दामों पर बिक्री की जाती है। नुक़सान होता है किसान का। लेकिन यह समस्या तो लगभग देशभर के किसानों की है। फिर इस एमएसपी को लेकर पंजाब के किसान ही बार-बार आंदोलन पर क्यों उतर आते हैं?
वे ही महीनों दिल्ली की सीमा पर क्यों पड़े रहते हैं? वे ही ट्रेनें क्यों रोकते हैं? जवाब सीधा सा है- पंजाब के किसान जागरूक हैं। जुझारू हैं। हरियाणा के किसान हमेशा उनके साथ रहते हैं। उनके आंदोलन का समर्थन भी करते हैं। लेकिन देशभर में ज़्यादातर जगह इस बारे में एक पत्ता तक नहीं हिलता।
शायद शेष देश के किसान मानते हैं कि पंजाब वाले आंदोलन कर तो रहे हैं! उन्हें यह सब करने की क्या ज़रूरत है? अगर केंद्र सरकार कोई फ़ैसला लेती है तो फ़ायदा तो उन्हें भी मिल ही जाएगा! अब एकता की ताक़त किसे और कौन समझाए?
जब दिल्ली की सीमाओं पर कृषि बिल वापस लेने और एमएसपी अनिवार्य करने के लिए लम्बा आंदोलन चलाया गया था तब भी शेष देश के किसान पंजाब और हरियाणा वालों के साथ उस ताक़त से नहीं आए थे जिस तरह आना चाहिए था। जबकि शेष देश के किसानों को एमएसपी की अनिवार्यता की ज़रूरत ज़्यादा है। जहां तक सरकारों का सवाल है, उन्हें एमएसपी अनिवार्य करने में क्या परेशानी है, यह बात आज तक किसी के समझ में नहीं आई!