सूरजकुंड मेले के शिल्पकार की कला: राजा-महाराजाओं व अंग्रेजों के काल से अब तक के पोस्टकार्ड पर किशनगढ़ शैली को निखार रहे, तीन पीढ़ी से जिंदा रखी है कला

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कृष्ण के 24 अवतारों की कलाकृति बनी आकर्षण का केंद्र, घर से 100 किमी. दूर जाकर पिता ने सीखी थी कला।

  • पहली बार मेले में आए हैं, शिल्पकार काे मलाल कला का महत्व कम हाेने से लुप्त होने के कगार पर जा रही बनी ठनी आर्ट

राजस्थान के किशनगढ़ में करीब पौने तीन सौ साल पहले शुरू हुई किशनगढ़ शैली की बनी-ठनी आर्ट को पुष्पेंद्र साहू ने आज भी जिंदा रखा हैै। नाबार्ड के सहयोग से सूरजकुंड मेले में पहली बार आए पुष्पेंद्र की कलाकृतियां दर्शकों के आकर्षण का केंद्र है। इन्होंने राजा महाराजाओं व अंग्रेजों के कार्यकाल से लेकर अब तक के पोस्टकार्ड पर अनोखी कलाकृति बनाई है। इनका परिवार तीन पीढ़ी से इस कला को जिंदा रखा है। लेकिन इन्हें मलाल है कि डिजिटल पेंटिंग आने से अब ये कला धीरे धीरे लुप्त हो रही है।पुष्पेंद्र अपनी इस शैली को अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रशिया और जापान तक पहुंचा चुके हैं।

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बनीठनी कला की ऐसे हुई शुरूआत

दैनिक भास्कर से बात करतेे हुए पुष्पेंद्र साहू ने बताया कि वर्ष 1748 में राजा सावन सिंह के कार्यकाल में उनके साथ शिल्पकार निहाल सिंह किशनगढ़ आए थे। बनी-ठनी नाम की उनकी दासी थी। राजा सावन सिंह ने कभी दासी का चेहरा तक नहीं देखा था। लेकिन उन्हाेंने कल्पना करके शिल्पकार निहाल सिंह को बनी ठनी का चित्र बनाने का आदेश दिया। निहाल िसंह ने राजा के द्वारा बताई आकृति के अनुसार चित्रकारी कर आकर्षक लुक प्रदान किया। तभी से इस कला का उदय माना जाता है।

तीन पीढ़ी पहले इनके परिवार में ये कला जन्मीं

पुष्पेंद्र ने बताया कि उनके परिवार में इस कला की शुरूआत दादा शंकरलाल ने शुरू की थी। कुछ समय बाद ही दादा की मौत हो गयी। 20 साल की उम्र में पिता हंसराज साहू अपने घर से करीब 100 किमी. दूर जयपुर जाकर इस कला काे सीखा। छह महीने तक वहीं टिके रहे। बनी ठनी कला सीखने के बाद ही वह अपना काम शुरू किया। तीसरी पीढ़ी में अब वह खुद इस कला काे जिंदा रखा है।

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गिलहरी की पूंछ से आकृति में भरते हैं रंग

शिल्पकार ने बताया कि शिल्क के कपड़े को प्लाई पर चिपकाते हैं। उस पर आरारोट पेस्ट करते हैं। फिर कपड़े पर आकृति बनाते हैं। उसके बाद नेचुरल कलर से रंग भरते हैं। खास बात ये है कि आकृति में रंग भरने में गिलहरी की पूंछ से बने ब्रस का उपयोग करते हैं। क्योंकि गिलहरी की पूंछ के बाल बेहद मुलायम होता है।

वर्ष 1909 के पोस्टकार्ड तक बनाई कला उपलब्ध

इनके पास मेले में राजाओं के कार्यकाल से लेकर अंग्रेजों के शासन काल वर्ष 1909, 1911, 1931, लेकर अब तक के सभी पोस्टाकार्ड पर बनाई कलाकृति उपलब्ध है। इसके अलावा राजाओं के शासन में चलने वाले स्टांप पेपर पर भी कलाकृति बनाकर उसे संवारा है। भगवान कृष्ण के 24 अवतार की आकृति आकर्षण का केंद्र हैै। विदेशों में इसकी बहुत डिमांड है। इस आकृति की कीमत करीब डेढ़ लाख है।

 

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