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एस• के• मित्तल
सफीदों, आर्य समाज सफीदों का मासिक वैदिक सत्संग धूमधाम से संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता आर्य समाज के प्रधान यादविंद्र बराड़ ने की। इस अवसर पर प्रात:काल विशाल हवन आयोजित किया गया। हवन में श्रद्धालुओं ने वैदिक मंत्रोचारण के बीच आहुतियां डाली। कार्यक्रम में भजनोपदेशक कुलदीप भास्कर ने अपने भजनों के माध्यम से आर्य समाज की अलख जगाई। वहीं प्रवचनकर्त्ता स्वामी धर्मदेव महाराज ने लोगों को आर्य समाज के बारे में बताते हुए कहा कि ईश्वर निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वातर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है।
सफीदों, आर्य समाज सफीदों का मासिक वैदिक सत्संग धूमधाम से संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता आर्य समाज के प्रधान यादविंद्र बराड़ ने की। इस अवसर पर प्रात:काल विशाल हवन आयोजित किया गया। हवन में श्रद्धालुओं ने वैदिक मंत्रोचारण के बीच आहुतियां डाली। कार्यक्रम में भजनोपदेशक कुलदीप भास्कर ने अपने भजनों के माध्यम से आर्य समाज की अलख जगाई। वहीं प्रवचनकर्त्ता स्वामी धर्मदेव महाराज ने लोगों को आर्य समाज के बारे में बताते हुए कहा कि ईश्वर निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वातर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है।
ईश्वर का यह स्वरूप जगत व सृष्टि में विद्यमान है जिसे विवेक व बुद्धि से जाना जा सकता है। जगत का कर्ता वहीं एकमात्र ईश्वर है क्योंकि चेतन तत्व में ही ज्ञान व तदनुरूप क्रिया होती है। यह सृष्टि भी ज्ञान व क्रिया की पराकाष्ठा है इससे भी ईश्वर चेतन तत्व व सर्वशक्तिमान सिद्ध होता है। ईश्वर स्वभाव से आनंद से युक्त है। हर क्षण व हर पल वह आनंद से युक्त रहता है। यदि ऐसा न होता तो वह सृष्टि नहीं बना सकता था और नाहि अन्य ईश्वरीय कार्य, सृष्टि का पालन, जीवों के सुख-दुख रूपी भोगों की व्यवस्था आदि कार्य कर सकता था।
इसी प्रकार से ईश्वर के विषय में जो बातें कही हैं वह जानी व समझी जा सकती है। यही ईश्वर का सत्य स्वरूप है। कार्यक्रम के समापन पर विशाल ऋषि लंगर का आयोजन किया जाएगा। जिसमें सैंकड़ों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।
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