अंहिसा जैन धर्म की आत्मा है: मुनि अरूण

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सफीदों अनाज मण्डी हुई मुनि अरूणमय

एस• के• मित्तल 
सफीदों,          शुक्रवार को संघशास्ता गुरुदेव सुदर्शन लाल जी महाराज के सुशिष्य एवं युवा प्रेरक अरूण मुनि जी महाराज की प्ररेणा और कृपा से सफीदों अनाज मंडी पूरी तरह से अरूणमय हो गई। सैंकड़ों श्रद्धालुओं की धर्मसभा को मुनि अरूण के श्रीमुख से जीणवाणी सुनने का पावन मौका मिला।
ठाठे मारती धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि अरूण ने कहा कि प्रत्येक आत्मा में परमात्मा को देखने वाले महापुरुष ही धर्मस्वरूप को समझते हैं और वे ही अहिंसा की आराधना कर सकते हैं। अहिंसा एक सनातन तत्व है। हमारा देश धर्मप्रधान होने के कारण ही एक महान देश कहलाता है। अहिंसा, संयम, तप रूप मंगलमय धर्मदीप का प्रकाश यदि विश्व को आलोकित कर दे, तो निश्चय ही धरा से अज्ञान का तमस समाप्त हो सकता है। अहिंसा एक शाश्वत तत्व है और भारतीय संस्कृति की मुख्य पहचान है। अहिंसा सभी को अभय प्रदान करती है। वह सृजनात्मक है और समृद्धता से युक्त है। आज का सभ्य संसार वातावरण में घुटन और अस्वस्थता का अनुभव कर रहा है।
एक ओर कहीं विध्वंसक भौतिकता व्याप्त है। दूसरी ओर स्वार्थपरक भावनाओं से वह विषाक्त हो रहा है। आज शांति के लिए एक आध्यात्मिक जाग्रति आवश्यक है, जो राष्ट्र, समाज और परिवार से हिंसा का अंधकार दूर कर सके। महावीर स्वामी का अमृत संदेश समस्त प्राणी जगत के कुशल-क्षेम का संवाहक है, अपार शांति का अक्षय स्रोत है और मानव जाति को सुदृढ़ व सुगठित रखने का दिव्य संदेश है। जैन धर्म में अहिंसा का बड़ा ही व्यापक अर्थ लगाया जाता है, किसी की हत्या न करना या खून न बहाना ही अहिंसा का उदाहरण नहीं है।
मन-वचन-कर्म से किसी को कोई कष्ट न देना अहिंसा है। अहिंसा के अंतर्गत केवल मानव ही नहीं पशु-पक्षी, जीव-जन्तु को भी कष्ट नहीं पहुंचाना है। अर्थात अपनी आत्मा के समान ही सबको मानो। अहिंसा का संबंध मनुष्य के हृदय के साथ है, मस्तिष्क के साथ नहीं। मुनि अरूण ने कहा कि मन को हमेशा शांत रखे, हमेशा सकारात्मक सोचें और समय-समय पर अपने मन की समीक्षा करते रहें। यह तभी होगा तब हम भौतिकता के साथ-साथ आध्यात्मिका को अपने जीवन में धारण करेंगे।
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