मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने 12 फरवरी को कहा था कि 1961 के बाद से मणिपुर में बसे सभी लोगों को बाहर निकाला जाएगा।
मणिपुर में हिंसा और अशांति का असर अब पड़ोसी राज्य मिजोरम में भी दिखने लगा है। मिजोरम सरकार ने भी म्यांमार से लगी सीमा की फेंसिंग और मुक्त आवागमन बंद करने के विरोध के बीच नोटिस जारी कर राज्य में 1950 के बाद आने वाले लोगों के जमीन खरीदने या मालिकाना हक हासिल करने पर रोक लगा दी है।
दूसरी तरफ, प्रमुख छात्र संगठन मिजो स्टूडेंट्स यूनियन (MSU) ने सोमवार को चेतावनी जारी कर कहा है कि मणिपुर से किसी भी मिजो या जनजातीय व्यक्ति को निष्कासित किया, तो हम भी मिजोरम में रहने वाले सभी मैतेइयों को बाहर निकाल देंगे।
इस चेतावनी को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के 12 फरवरी को दिए उस बयान का जवाब माना जा रहा है, जिसमें सिंह ने कहा था कि 1961 के बाद मणिपुर आने वाले हर व्यक्ति की पहचान कर राज्य से बाहर किया जाएगा। वे किसी भी जाति या समुदाय के हों, उन्हें बाहर किया जाएगा।
मिजोरम के छात्र संगठन की इस चेतावनी से पूर्वोत्तर क्षेत्र के महीनों से अस्थिर इस इलाके की परिस्थिति और अधिक संवेदित होने की आशंका पैदा हो गई है। छात्र नेता का कहना है कि मिजोरम में रहने वाले सभी मैतेइयों की विस्तृत सूची भी तैयार कर ली गई है।
दरअसल, मणिपुर सरकार का फैसला राज्य के स्थानीय जाति समूहों के लोगों की रक्षा को लेकर उठाए गए कदम के रूप में देखा जा रहा है। राज्य में मई 2023 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है। सीएम बीरेन ने हिंसा के लिए ड्रग माफिया और अवैध प्रवासियों, खासकर म्यांमार के शरणार्थियों को दोषी ठहराया था।
मणिपुर में बिना परमिशन एंट्री पर रोक
केंद्र सरकार ने मणिपुर में 2019 में इनर लाइन परमिट (ILP) सिस्टम लागू करने की घोषणा की थी। जिस राज्य में ILP लागू होता है, वहां बिना परमिशन के गैर-मूल निवासियों की एंट्री पर रोक होती है। ब्रिटिश शासन के दौरान बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत ILP लागू किया गया था।
हालांकि, 1950 में मणिपुर से ILP हटा लिया गया था। इसे दोबारा लागू करने के लिए लंबे समय से मांग हो रही थी। केंद्र के फैसले के बाद 1 जनवरी, 2020 से ILP मणिपुर में लागू हुआ। राज्य सरकार ने 2022 में ILP के तहत प्रवासियों के लिए 1961 को बेस ईयर माना।
राज्य में 1961 से पहले बाहर से आए लोगों मूल निवासी नहीं मानने का प्रावधान किया गया। मणिपुर के अलावा पूर्वोत्तर के मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में भी इनर लाइन परमिट (ILP) सिस्टम लागू है।
मणिपुर में अब तक 200 से ज्यादा मौतें, 1100 घायल
मणिपुर में 3 मई से कुकी और मैतेई के बीच जातीय हिंसा हो रही है। इसमें अब तक 200 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। 1100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। राज्य में अब तक 65 हजार से ज्यादा लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। 6 हजार मामले दर्ज हुए हैं और 144 लोगों की गिरफ्तारी हुई है।
4 पॉइंट्स में जानिए- क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।