उत्कृष्ट समाज की संरचना में गुरूओं की भूमिका अहम: स्वामी निगमबोध श्री हरि संकीर्तन भवन में गुरू पुर्णिमा महोत्सव आयोजित

एस• के• मित्तल 
सफीदों,      नगर के श्री हरि संकीर्तण भवन में बुधवार को गुरू पुर्णिमा महोत्सव मनाया गया। महोत्सव में वेदाचार्य दंडी स्वामी एवं राष्ट्रपति अवार्डी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। इस अवसर पर नगर के दर्जनों श्रद्धालुओं ने संकीर्तन भवन पहुंचकर स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज का माल्यार्पण व पूजा-अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
श्रद्धालुओं को गुरू पुर्णिमा का महत्व समझाते हुए स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने चारों वेद की रचना की थी। प्राचीनकाल से आज के आधुनिक दौर तक उत्कृष्ट समाज के निर्माण में गुरु ओं की भूमिका अहम रही है। उनकी इस भूमिका को सरल और गूढ़ रूप में संत कबीरदास ने अपने दोहे के माध्यम से भी दर्शाया है। अपने दोहे में संत कबीरदास ने गुरुजनों के महत्व को श्रेष्ठ दर्जा दिया है। वे लिखते हैं कि गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु अपने, गोविंद दियो बताए। यानी गुरु और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए-गुरु को या गोविंद को।
फिर अगली पंक्ति में उसका जवाब देते हैं कि ऐसी स्थिति हो तो गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उनके ज्ञान से ही आपको गोविंद के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। स्वामी निगमबोध तीर्थ ने कहा कि गुरु के बिना ज्ञान का मिलना असंभव है। जब तक गुरु की कृपा प्राप्त नहीं होती, तब तक कोई भी मनुष्य अज्ञान रूपी अधंकार में भटकता हुआ माया मोह के बंधनों में बंधा रहता है, उसे मोक्ष (मोष) नहीं मिलता। गुरु के बिना उसे सत्य और असत्य के भेद का पता नहीं चलता, उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं होता। उन्होंने श्रद्धालुओं से कहा कि वे संतो-महात्माओं व गुरूओं की शरण में जाएं। उनकी शरण में जाने से ही मनुष्य का बेड़ा पार हो सकता है।

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