सांस अभियान: 5 वर्ष की उम्र के बच्चों की हर साल होने वाली मृत्यु में निमोनिया सबसे बड़ा कारण, हो जाती हैं 15% मौतें

 

  • अब रोकेगा इस संक्रमण को, एमओ व स्टाफ को दी जाएगी विशेष ट्रेनिंग

0 से 5 वर्ष तक के बच्चों में निमोनिया मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। इसी संक्रमण की वजह से इस आयु वर्ग के बीच में होने वाली मौत का आंकड़ा 15% है। ऐसे में निमोनिया से बच्चों में होने वाली मृत्यु दर को कम करने के लिए ही नवंबर माह में सांस अभियान की शुरूआत की गई।

सांस अभियान: 5 वर्ष की उम्र के बच्चों की हर साल होने वाली मृत्यु में निमोनिया सबसे बड़ा कारण, हो जाती हैं 15% मौतें

जिसके अंतर्गत अब गुरुवार को सिविल अस्पताल में जिले की सीएचसी-पीएचसी के मेडिकल अधिकारी और स्टाफ नर्स व एएनएम को विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। दो दिन के इस प्रशिक्षण के दौरान उनको निमोनिया संक्रमण को पहचानने और उसकी रोकथाम को लेकर जरूरी जानकारी प्रदान की जाएगी। ताकि बच्चों की इस बीमारी की वजह से होने वाली मौत को रोका जा सके।

निमोनिया से बचाव के तरीके: बच्चे के शरीर को ढककर रखें, सर्दियों में ऊनी कपड़े पहनाएं और जमीन पर नंगे पांव ना चलने दें, घर में धुआं न होने दें और खिड़कियां खुली रखें, पीने का पानी ढककर रखें, जन्म के पहले घंटे में स्तनपान, जन्म से 6 माह तक केवल मां का दूध पिलाएं और 6 माह के बाद ऊपरी ठोस आहार भी शुरू करें। साथ ही बच्चे का संपूर्ण और समय अनुसार टीकाकरण भी जरूरी है।

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बच्चों की सांसें गिनने का मापदंड…

  • 0 से 2 माह तक के शिशु : प्रति मिनट सांसों की गति 60 से ज्यादा होना।
  • 2 माह से 1 साल तक के शिशु : प्रति मिनट सांसों की गति 50 से ज्यादा होना।
  • 1 साल से 5 साल तक के शिशु : प्रति मिनट सांसों की गति 40 से ज्यादा होना।

ऐसे लक्षण पर तुरंत कराएं उपचार
खांसी और जुकाम का बढ़ना, तेजी से सांस लेना, सांस लेते समय पसली चलना या छाती का नीचे धंसने के साथ ही गंभीर लक्षणों में खाने-पीने में परेशानी, झटके आना और सुस्ती या अधिक नींद आना है।

बचाव के लिए करेंगे जागरूक
नोडल अधिकारी डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि प्रतिवर्ष निमोनिया से बड़ी संख्या में बच्चे संक्रमित हो जाते हैं। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में निमोनिया के कारण होने वाली मृत्यु अन्य संक्रामक रोगों से होने वाली मृत्यु की तुलना में अधिक है। ऐसे में निमोनिया व दस्त रोग के कारण होने वाली शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए ही यह अभियान चलाया गया है। जिसके लिए एमओ व पैरा मेडिकल स्टाफ को ट्रेनिंग भी दी जाएगी।

 

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