सत्संग में आने से मनुष्य का स्वभाव बदलता है: स्वामी धर्मदेव

आर्य समाज सफीदों का मासिक वैदिक सत्संग संपन्न

एस• के • मित्तल 

सफीदों,      आर्य समाज सफीदों के तत्वावधान में नगर के आर्य समाज मंदिर में मासिक वैदिक सत्संग का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता आर्य समाज सफीदों के प्रधान यादविंद्र बराड़ ने की। समारोह में बतौर भजनोपदेशिका बहन अंजली आर्या (उत्तरप्रदेश) तथा प्रवचनकर्ता स्वामी धर्मदेव महाराजा (गुरूकुल पिल्लूखेड़ा) ने शिरकत की। अपने संबोधन में स्वामी धर्मदेव व अंजली आर्या ने कहा कि यज्ञ त्याग भाव है।

अग्नि की ज्वाला सदैव ऊपर की ओर उठती है। अग्नि को बुझा सकते हैं, नीचे झुका नहीं सकते। हमारा जीवन भी अग्रि की तरह से ऊध्र्वगामी हो, श्रेष्ठ, पवित्र व कल्याणकारी पथ पर निरंतर गतिशील रहे ऐसी कामना यज्ञ में की जाती है। अग्नि वातावरण को पवित्र करती है तथा हमारे अंत:करण के अंधेरे को दूर करती है। शरीर में कर्म की, इंद्रियों में तप की तथा मन में श्रेष्ठ विचारों की अग्नि सदैव प्रज्ज्वलित रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सत्संग में आने के बाद मनुष्य के स्वभाव में बदलाव आता है तथा उसके अंदर अच्छे भाव पैदा होते हैं।
उन्होंने बताया कि मनुष्य जैसा आहार ग्रहण करता है, उसका व्यवहार भी वैसा ही होता है। शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए भोजन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मनुष्य को सदैव सादा भोजन ग्रहण करना चाहिए। जीवन का पहला सुख निरोगी काया है। मनुष्य निरोग रहकर ही अपने समाज के विकास में योगदान दे सकता है। इस मौके पर विशाल हवन का आयोजन किया गया जिसमें श्रद्धालुओं ने अपनी आहुतियां डालकर सुख-शांति की कामना की। प्रवचन के उपरांत ऋषि लंगर का आयोजन किया जाएगा, जिसमें सैंकड़ों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।

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