एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि मनुष्य को हिंसक व भोग का रास्ता छोड़कर धर्म और तप का मार्ग अपनाना चाहिए।
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जीवन में किया गया धर्म, पुण्य कर्म और तप ही मनुष्य के अंतिम समय में साथ जाता है। काम वासना, अर्थ, मोहमाया सहित अन्य सबकुछ इसी संसार में रह जाएगा। भौतिक वस्तुओं को पाने के लिए अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं, लेकिन जब वे इस दुनिया से विदा होते हैं तो वे अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा पाते। उनकी सारी कमाई यहीं रह जाती है। अगर वे कोई चीज अपने साथ ले जाते हैं तो वह है उनके अच्छे कर्म और लोगों की दुआएं। जीवन में मनुष्य को आम्त्मज्ञान का होना बेहद जरूरी है। आत्मज्ञान की अनुभूति गुरूओं के चरणों में रहकर ही प्राप्त की जा सकती है। जीवन में वाणी में मधुरता होनी आवश्यक है। अगर वाणी में मधुरता होगी कभी भी हिंसा नहीं होगी। अगर हम मन को रोककर रखेंगे तो वाणी कभी भी दूषित नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि यह संसार बहुत स्वार्थी है। वह मनुष्य को सदैव मोह-ममता में फंसाकर रखता है। संसार के सभी रिश्ते-नाते झूठे हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य का एक ही कर्म व धर्म है और वह है मानवता। हम इस दुनिया में इंसान बनकर आए हैं तो सिर्फ इसलिए कि हम मानव सेवा कर सकें। पूरे विश्व में ईश्वर ने हम सभी को एक-सा बनाया है। फर्क बस, स्थान और जलवायु के हिसाब से हमारा रंग-रूप, खान-पान और जिंदगी जीने का अलग-अलग तरीका है।