भास्कर ओपिनियन: केवल आर्थिक ही नहीं, कई मोर्चों पर जूझ रही है कांग्रेस

1 घंटे पहले

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राजनीति में कब किसका पासा उल्टा पड़ जाए, कहा नहीं जा सकता। देश की सबसे पुरानी और कभी सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस इन दिनों कई मोर्चों से जूझ रही है। सबसे पहला मोर्चा अविश्वास का है। उसके अपने अधिकांश नेताओं, कार्यकर्ताओं को यह विश्वास नहीं है कि उनकी विजय हो पाएगी।

दूसरा मोर्चा है डर का। कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह डर सताता रहता है कि उनके यहाँ कहीं सीबीआई या ईडी का छापा न पड़ जाए। कई नेता तो इसी ख़ौफ़ में पार्टी भी बदल चुके हैं। हैरत की बात यह है कि पार्टी बदलते ही उनके सारे पाप धुल जाते हैं!

तीसरा और बड़ा मोर्चा है आर्थिक। आर्थिक तौर पर कांग्रेस पार्टी की कमर बुरी तरह तोड़ दी गई है। जब राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा किया जाता है तो निचले स्तर के कार्यकर्ताओं तक जो संदेश पहुँचता है, उसमें जीत का उत्साह तो रह ही नहीं जाता। कांग्रेस के तमाम बैंक खाते पहले ही सील कर दिए गए थे। अब तक़रीबन साढ़े अठारह सौ करोड़ रुपए चुकाने का नोटिस इनकम टैक्स विभाग ने भेज दिया है।

पिछले दस सालों में ऐसे कई मुद्दे आए, जिन पर जनता को साथ लेकर कांग्रेस बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकती थी। जनता की नब्ज पहचान कर उनका भला करने की नीयत से कई ऐसे काम कर सकती थी जिनकी वजह से उसकी लोकप्रियता कुछ हद तक ही सही, वापस हासिल हो सकती थी।

लेकिन पूरे दस साल तक कुम्भकरणी नींद में ग़ाफ़िल रहने के बाद अब खुद को इनकम टैक्स का नोटिस मिलने पर प्रेस कान्फ्रेंस करके रोना रोया जा रहा है। दिल्ली में अजय माकन अचानक प्रकट होते हैं और कांग्रेस को मिले इनकम टैक्स नोटिस के बारे में बताने लगते हैं। वे यह नहीं कहते कि ये नोटिस किस तरह ग़लत है। यह भी नहीं कहते कि हमारी पार्टी पाक साफ़ है। बल्कि यह कहते हैं कि इस तरह तो भाजपा को 4600 करोड़ का नोटिस दिया जाना चाहिए।

अजय माकन यह कैलकुलेशन कहाँ से लाए, पता नहीं लेकिन इतना तय है कि लम्बे समय से खुद माकन की केलकुलेशन अपनी पार्टी में बैठ नहीं पा रही है। ये वही माकन हैं जिन्हें राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बैरंग चिट्ठी की तरह जयपुर से वापस दिल्ली भेज दिया था।

तब से लेकर अब तक माकन साहब अपनी ही पार्टी में दबे- दबे से मालूम पड़ते हैं। ख़ैर बात पार्टियों की माली हालत की है तो देश में भाजपा छोड़ लगभग सभी पार्टियों की हालत कांग्रेस जैसी ही हो चुकी है। उनके तमाम आर्थिक स्रोत कट चुके हैं। आवक बंद हो चुकी है। लोकसभा चुनाव के ऐन मौक़े पर छटपटाने के सिवाय कोई चारा नहीं रह गया है।

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