भगवान जन्म और मरण के बंधन से मुक्त है: मुनि नवीन चंद्र

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एस• के• मित्तल 
सफीदों,       नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि हमने पिछले पिछले जन्म में क्या कर्म किए है उसका हमें कोई पता नहीं होता लेकिन जो भी कर्म हमने किए है उसका फल हमें अवश्य ही भोगना पड़ता है। हमें भगवान को अच्छे और बुरे कर्मों के फल को लेकर भगवान को दोष नहीं देना चाहिए। भगवान जन्म और मरण के बंधन से मुक्त है।
श्रावक-श्राविका संतों व गुरूओं को भगवान मान लेते हैं। अगर गुरू या संत स्वयं को भगवान मान ले तो वह भी गलत है क्योंकि गुरू भगवान नहीं है। गुरू या संत तो केवल मनुष्य को भगवान के दिखाए गए मार्ग की ओर अग्रसर करते हैं। उन्होंने कहा कि सृष्टि अनादि है। सृष्टि सदा से चलती आ रही है और आगे भी इसी प्रकार से चलती रहेगी। इस संसार रूपी भव सागर में हम अच्छे कर्म करेंगे तो अच्छा फल मिलेगा और बुरे कर्म करेंगे तो बुरा फल मिलेगा। मनुष्य को अपने विचारों व आचरण को शुद्ध रखना चाहिए। शुद्ध विचारों व आचरण के व्यक्ति ही जीवन में आगे बढ़़ते हैं और सभी के कृपापात्र बनते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा एक मिनट का क्रोध हमारी सालों की शक्ति को खत्म कर देता है। अशुभ विचारों के कारण शरीर बीमारियों का घर बन जाता है।
मन जहां बंधन का कारण है तो वह मुक्ति का कारण भी बन सकता है। धर्म को हर पल अपने साथ रखना चाहिए। लोग जन्म भी ले रहे हैं और मर भी रहे हैं लेकिन कर्मों की गति के कारण यह नहीं पता कि यह नहीं पता कि कौन कहां जा रहा है। शरीर जन्मता भी है और मरता भी है लेकिन आत्मा कभी नहीं मरती है। आत्मा अजर, अमर व अविनाशी है। मनुष्य को सदैव संयम पथ पर चलना चाहिए।
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