फास्ट ट्रैक कोर्ट में पॉक्सो के 2.43 लाख मामले पेंडिंग: सिर्फ 3% केस में सजा, रिपोर्ट में दावा- मौजूदा रफ्तार से केस निपटाने में 9 साल लगेंगे
फास्ट ट्रैक कोर्ट में लंबित पॉक्सो मामलों को निपटाने में 9 साल का समय लग सकता है।
देश में पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण कानून) के 2 लाख 43 हजार मामले लंबित हैं। 2022 में सिर्फ 3% मामलों में सजा हुई है। अगर कोई नया केस रिपोर्ट नहीं हुआ तो इन केस को निपटाने के लिए कोर्ट को 9 साल लगेंगे।
फास्ट ट्रैक कोर्ट में जनवरी 2023 तक पॉक्सो के लंबित मामलों की रिसर्च पब्लिश हुई है। इसी रिपोर्ट में ये दावा किया गया है।
रिपोर्ट इंडियन चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (ICPF) संस्था ने जारी की है। इस रिपोर्ट में कानून मंत्रालय, महिला-बाल विकास मंत्रालय और नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो (NCRB) का डेटा इस्तेमाल किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी 2023 तक 2 लाख 68 हजार 38 मामले रजिस्टर हुए थे, जिसमें से 8909 केस में ही सजा हुई।(08 दिसंबर 2023) राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक न्यूज़पेपर में प्रिंट ख़बर…
हर साल सिर्फ 28 मामलों में सजा
केंद्र सरकार ने 2019 में फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की योजना को आगे बढ़ाया था, जिसका उद्देश्य पॉक्सो के मामलों को एक साल में निपटाने का था। इसके लिए केंद्र ने 1900 करोड़ रुपए का बजट पास किया था।
स्टडी में पता चला कि हर फास्ट ट्रैक कोर्ट को हर चार महीने में 41-42 और हर साल 165 केस निपटाने थे, लेकिन हर साल सिर्फ 28 मामले ही निपट पाए।(08 दिसंबर 2023) राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक न्यूज़पेपर में प्रिंट ख़बर…
कैसे सुधरेगी स्थिति?
ICPF के फाउंडर और कैलाश सत्यार्थी के बेटे भुवन रिभु ने कहा कि पॉक्सो कानून को इस तरह होना चाहिए कि न्याय हर पीड़ित बच्चे को मिले।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस स्थिति को कैसे सुधारा जा सकता है।
- पॉक्सो के मामलों का डैशबोर्ड किसी वेब पोर्टल पर होना चाहिए।
- फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या बढ़ानी चाहिए।
- पीड़ित और उसके परिवार को सुरक्षा देनी चाहिए, जिससे कानूनी एक्शन लेने में वो पीछे न हटें।
ये खबरें भी पढ़ें…
POCSO में सहमति से संबंध की उम्र 18 ही रहे:अभिभावक हथियार की तरह कर रहे इस्तेमाल, लॉ कमीशन ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट
बच्चों को यौन हिंसा से संरक्षित करने वाले कानून पॉक्सो एक्ट 2012 के विभिन्न पहलुओं की गहन पड़ताल के बाद लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट कानून मंत्रालय को सौंप दी थी। लॉ कमीशन की बैठक 27 सितंबर को हुई थी।
इसमें आयोग ने कानून की बुनियादी सख्ती बरकरार रखने की हिमायत की थी। यानी आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की न्यूनतम उम्र 18 साल बनाए रखने की बात कही गई थी। हालांकि, इसके दुरुपयोग से जुड़े मामलों को देखते हुए कुछ सेफगार्ड लगाए गए थे। पूरी खबर पढ़ें…
.