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एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि प्रयूषण के दौरान तप का बड़ा महत्व है। पर्युषण पर्व को पर्वराज भी कहा गया है। पर्युषण पर्व के दौरान ज्ञावक उपवास रखकर त्याग, तपस्या और साधना करते हैं।
सफीदों, नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि प्रयूषण के दौरान तप का बड़ा महत्व है। पर्युषण पर्व को पर्वराज भी कहा गया है। पर्युषण पर्व के दौरान ज्ञावक उपवास रखकर त्याग, तपस्या और साधना करते हैं।
यह पर्व अपनी इंद्रियों पर काबू पाने और आत्मशुद्धि के लिए मनाया जाता है। जैन धर्म में अहिंसा और आत्मा की शुद्धि का विशेष महत्व है। यह पर्व जैन दर्शन के तप, साधना और सभी प्राणियों के प्रति दया के भावों को आत्मसात करने की प्रेरणा देता है। इस दौरान श्रावक-श्राविकाओं को चाहिए कि वे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच सिद्धांतो का व्रत लें। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति तप प्रधान संस्कृति रही है।
तप जीवन को पावन करने का राजमार्ग है। भारत का एक भी संत ऐसा नहीं होगा जिन्होंने जीवन में तप नहीं किया हो। जिनशासन में छोटे से छोटे व बड़े से बड़े तप का विधान है। तप जीवन का स्त्रोत है। तप से कर्मों की निर्जरा होती है और तप ही मोक्ष के मार्ग का स्त्रोत है। भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म व जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है और मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है।
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