भक्ति योग आश्रम में चल रहा है श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह
एस• के• मित्तल
सफीदों, पितृ पक्ष में श्रीमद् भागवत कथा श्रवण का विशेष महत्व है। उक्त उद्गार स्वामी शंकरानंद सरस्वती ने प्रकट किए। वे उपमंडल के गांव सरनाखेड़ी स्थित भक्ति योग आश्रम में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह के अंतर्गत व्यास पीठ से श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे।
चंडीगढ़ में वीजा लगवाने के नाम पर ठगी: दोस्त से पता चला फर्जी है फर्म, महिला कर्मी पर मुकदमा
इस मौके पर बच्चों के द्वारा सुंदर-सुंदर झांकियों का प्रदर्शन किया गया। इन झांकियों ने उपस्थित सभी श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। इस अवसर पर आयोजित भजनों की धून पर श्रद्धालुगण जमकर झूमे। अपने संबोधन में स्वामी शंकरानंद सरस्वती ने कहा कि श्रीमद्भगवत कथा के सुनने मात्र से ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। यह कथा हमें जीवन में अच्छे कर्म करते हुए सद्कर्म के मार्ग पर चलने का संदेश देती है। श्रीमद्भागवत कथा पितृ पक्ष में श्रवण ही पितृ दोष से मुक्ति दिला सकता है।
इसलिए पितृ पक्ष में इसका श्रवण और पाठन पितरों को मोक्ष दिलाने का अटूट साधन है। ऐसी मान्यता है कि इस कथा की वजह से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और सुनने वाले लोगों का मन शांत होता है, निगेटिविटी दूर होती है। उन्होंने कहा कि महर्षि वेद व्यास ने श्रीमद् भागवत कथा की रचना की। इस ग्रंथ को सकारात्मक सोच के साथ लिखा गया, इसके केंद्र में भगवान श्रीकृष्ण हैं। भगवान की लीलाओं की मदद से हमें संदेश दिया गया है कि हम दुखों का और परेशानियों का सामना सकारात्मक सोच के साथ करेंगे तो जीवन में शांति जरूर आएगी। महर्षि वेदव्यास ने इस ग्रंथ की रचना करके अपने पुत्र शुकदेव को ये कथा बताई। बाद में शुकदेव जी ने पांडव अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को ये कथा सुनाई थी। शुकदेव जी ने ही अन्य ऋषि-मुनियों को भागवत कथा का ज्ञान दिया। राजा परीक्षित को एक ऋषि ने शाप दे दिया था कि सात दिनों के बाद तक्षक नाग के डंसने से उसकी मौत हो जाएगी। इस शाप की वजह से परीक्षित निराश हो गए थे, उनका मन अशांत था, तब वे शुकदेव जी के पास पहुंचे और अपनी परेशानियां बताईं।
इसके बाद शुकदेव जी ने परीक्षित को भागवत कथा सुनाई। कथा सुनने के बाद परीक्षित की सभी शंकाएं दूर हो गईं, मन शांत हो गया और जन्म-मृत्यु का मोह भी खत्म हो गया। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे श्राद्ध पक्ष में श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण अवश्य करें।