दिल्ली में ट्रेन एक्सीडेंट के विक्टिम का सफल हैंड ट्रांसप्लांट: गंगाराम अस्पताल में हुआ रेयर ऑपरेशन; डॉक्टर बोले- सेंसेशन लौटने में कुछ समय लगेगा

 

दिल्ली में डॉक्टरों ने एक 45 साल के व्यक्ति के हाथों का ट्रांसप्लांट किया है। पेशे से पेंटर इस व्यक्ति के दोनों हाथ 2020 में हुए ट्रेन एक्सीडेंट में कट गए थे। जनवरी में सर गंगाराम अस्पताल में उन्हें एक डोनर के हाथ लगाए गए।

दिल्ली में ट्रेन एक्सीडेंट के विक्टिम का सफल हैंड ट्रांसप्लांट: गंगाराम अस्पताल में हुआ रेयर ऑपरेशन; डॉक्टर बोले- सेंसेशन लौटने में कुछ समय लगेगा

उनका ऑपरेशन 19 जनवरी को किया गया था। करीब 15 दिन बाद जब हाथों से पट्‌टी हटाई गई, तो मरीज की खुशी का ठिकाना नहीं था। छह हफ्ते तक अस्पताल में रहने के बाद गुरुवार को पेशेंट को डिस्चार्ज किया गया।

ट्रेन ट्रैक में फंसी साइकिल को निकालते वक्त कटे दोनों हाथ
पेशेंट का नाम राज कुमार है। वे नंगलोई के रहने वाले हैं और पेशे से पेंटर हैं। 2020 में जब वे साइकिल पर सवार होकर अपने घर के पास बने रेलवे ट्रैक को पार कर रहे थे। उनके पैर में चोट लगी होने से वे ट्रैक पर फिसल कर गिर गए और उनकी साइकिल ट्रैक में फंस गई।

वे साइकिल को निकालने की कोशिश कर रहे थे, जब ट्रैन की चपेट में आने से उनके दोनों हाथ कट गए। उसके बाद से वह आजीविका के लिए दूसरों पर निर्भर हो गए थे। अब हाथों के ट्रांसप्लांट के बाद उन्हें फिर से सामान्य जिंदगी जीने का एक मौका मिला है।

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डॉक्टरों की बड़ी टीम ने इस रेयर ऑपरेशन को अंजाम दिया
गंगाराम अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ प्लास्टिक एंड कॉस्मेटिक सर्जरी के चेयरमैन डॉ. महेश मंगल ने कहा कि सर्जरी के लिए डॉक्टरों की बड़ी एक साथ आई। टीम ने मरीज के हाथों की हड्‌डी, नसों, रक्त-वाहिनी, कोशिकाओं, मांसपेशियों और त्वचा समेत कई हिस्सों को डोनर के हाथों से बड़ी ही कुशलता से जोड़ा।

डॉ मंगल ने बताया कि सर्जरी से पहले पेशेंट के पास दो ऑप्शन थे- प्रॉस्थेटिक यानी कृत्रिम हाथों का इस्तेमाल करना या हाथों का ट्रांसप्लांट करवाना। पहले पेशेंट ने प्रॉस्थेटिक्स का इस्तेमाल करना शुरू किया लेकिन वह बहुत कारगर नहीं रहा। इसके बाद ट्रांसप्लांट ही उनकी अकेली उम्मीद रह गई।

लेकिन उस समय उत्तर भारत में किसी अस्पताल के पास हाथों का ट्रांस्प्लांट करने की अनुमति नहीं थी। पिछले साल फरवरी में गंगाराम अस्पताल हैंड ट्रांसप्लांट करने की अनुमति पाने वाला उत्तर भारत का पहला अस्पताल बना।

मरीज को लगाए गए रिटायर्ड वाइस-प्रिंसिपल के हाथ
डॉ मंगल ने बताया किजब अस्पताल हैंड ट्रांसप्लांट के लिए मरीज ढूंढ रहा था, तब कुमार अस्पताल की वेटिंग लिस्ट में थे। प्रोटोकॉल के मुताबिक, अस्पताल ने डिटेल एग्जामिनेशन और जरूरी इन्वेस्टिगेशन किए। इसके बाद जनवरी के तीसरे हफ्ते में राज कुमार के लिए डोनर मिल गया। दिल्ली के एक स्कूल की रिटायर्ड वाइस-प्रिंसिपल की मृत्यु के बाद उनके परिवार ने उनके अंगदान की इच्छा जाहिर की थी। उन्हीं वाइस-प्रिंसिपल के हाथ कुमार को लगाए गए।

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जीवनभर रखना होगा इंफेक्शन से बचाव का ध्यान
डॉक्टरों का कहना है कि कुमार का ऑपरेशन सफल रहा है। पर उनकी इम्युनिटी काफी कमजोर है। उन्हें ध्यान रखना होगा कि उन्हें कोई इन्फेक्शन न हो। उन्हें जीवनभर एंटी-रिजेक्शन दवाएं लेनी होंगीं, जिनमें इम्यूनोसप्रेसेंट भी शामिल हैं, जो किडनी या लिवर ट्रांसप्लांट में दी जाती हैं। डॉक्टर ने बताया कि बुधवार को कुमार के नाखून ट्रिम किए गए।

डॉ मंगल के मुताबिक, कुमार के हाथों में सेंसेशन तो लौट रहा है, लेकिन नसों को जुड़ने में कुछ समय लगेगा। वे अपनी कोहनी तो हिला पा रहे हैं, लेकिन हाथ और कलाई को हिला पाने में समय लगेगा। इसके अलावा, दर्द या ऊष्मा जैसे सेंसेशन को महसूस करने के लिए भी कम से कम छह से सात महीने का समय लगेगा। उन्हें ध्यान रखना होगा कि वे बहुत गर्म या बहुत ठंडी चीजों को न छुएं। उन्हें फ्लू सीजन में मास्क पहनना होगा और साफ-सफाई का खयाल रखना होगा।

जहां तक सर्जरी मार्क्स का सवाल है, वे बहुत कम हो चुके हैं और समय के साथ और कम हो जाएंगे। उन्हें महिला के हाथ ट्रांसप्लांट किए गए हैं, इसके बावजूद कुछ समय बाद उनके हाथ पर बाल भी उगने लगेंगे।

 

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