एस• के• मित्तल
सफीदों, बसंत पंचमी के अवसर पर उपमंडल के गांव अंटा स्थित राधा स्वामी आश्रम में सत्संग का आयोजन किया गया। सत्संग में राधास्वामी परमसंत सतगुरु कंवर साहेब महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने कहा कि बसंत पंचमी का दिन राधास्वामी मत की संगत के लिए सबसे बड़ा दिन है क्योंकि राधास्वामी मत के अधिष्ठाता स्वामी महाराज ने अपने गुरुमुख शिष्य राय सालिगराम के आग्रह पर बसंत पंचमी के ही दिन सत्संग को आम जीवों के लिए 1861 में जारी किया था।
सफीदों, बसंत पंचमी के अवसर पर उपमंडल के गांव अंटा स्थित राधा स्वामी आश्रम में सत्संग का आयोजन किया गया। सत्संग में राधास्वामी परमसंत सतगुरु कंवर साहेब महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने कहा कि बसंत पंचमी का दिन राधास्वामी मत की संगत के लिए सबसे बड़ा दिन है क्योंकि राधास्वामी मत के अधिष्ठाता स्वामी महाराज ने अपने गुरुमुख शिष्य राय सालिगराम के आग्रह पर बसंत पंचमी के ही दिन सत्संग को आम जीवों के लिए 1861 में जारी किया था।
यही कारण है कि राधास्वामी मत से जुड़े जीव के लिए तो यह दिन ही सबसे बड़ा तीर्थ, सबसे बड़ा स्नान और सबसे बड़ी भक्ति का दिन है। हुजूर कंवर साहेब महाराज ने फरमाया कि आज का दिन का यह महत्व भी है कि यह दिन मां सरस्वती की पूजा का दिन भी है जो ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। जो दिन ज्ञान श्रद्धा और भक्ति को एक ही समय पर याद दिलाए उस दिन से बढ़कर कोई महान दिन हो ही नहीं हो सकता। राधास्वामी सत्संग दिनोद के लिए तो ये और भी बड़ा दिन है क्योंकि बसंत पंचमी के दिन ही अंटा गांव की इस पावन भूमि पर परमसंत ताराचंद महाराज अपना मौन व्रत खोला करते थे। उन्होंने कहा कि जिनके मन मे ईर्ष्या चुगली भरी पड़ी है, जिन्होंने करनी की नहीं लेकिन बातों के बहुत बड़़े भक्त बने फिरते हैं, जिनके ऊपर गुरु वचन का कोई असर नहीं है वे मनमुख होते हैं उन पर ना सत्संग का असर पड़ता है और ना संगत का। ऐसे लोग अपनी उसी पुरानी आदत के वश होकर अपनी रूह को संसार रूपी इस मीठी जेल में फंसाएं रखते हैं।
तन मन से तो सभी दुखी हैं लेकिन जीव आज रूह से भी दुखी हैं क्योंकि आज कोई रूह का कल्याण करने वाला रहबर ही नहीं रहा। आज मान-मर्यादाओं में रहने वाले संत ही नहीं रहे तो भक्त कहां से होंगे। जिसको देखो वहीं पाप कर्म में धंसा जा रहा है। उन्होंने फरमाया कि सांसारिक कीच से निकले बिना भक्ति के मार्ग पर चलना असम्भव है। आज सब कुटिलता के साथ जी रहे हैं क्योंकि गुरु को तो हम देह रूप से जानते हैं। गुरु जो नाम की पूंजी देता है उस पूंजी को सब व्यर्थ गंवा रहे हैं। गुरु के रूप में भेदी भी मिल गया और अनमोल लाल का भी भेद मिल गया लेकिन फिर भी अगर आपने पूंजी गंवा दी तो ऐसे जीव का कौन भला करे। यही सत्य है कि गुरु नाम की पूंजी को तो कोई गुरुमुख ही संभाल सकता है। यही सत्य है कि गुरु अपनी पूंजी, अपनी दौलत अपने गुरुमुख को ही सौंपता है। उन्होंने कहा कि इंसान यदि इंसानी बर्ताव नहीं करता तो वो तो पशु से भी बदतर है क्योंकि पशु के तो मरने के बाद भी उसके अंग काम आते है लेकिन इंसान का मरने के बाद क्या काम आता है इसलिए भूत को छोड़ो और वर्तमान को सुधारो। तन मन धन कहने को तो गुरु को सौप दिया लेकिन मन का संशय नहीं गया फिर क्या लाभ। गुरु तीन काल की जानते हैं। नाम वचन और दृष्टि तीनो की सिद्धि की है गुरु ने क्योंकि उन्होंने नाम की कमाई की है। उनकी कमाई का लाभ केवल सच्चा साधक ही उठा पाता है।
बसंत पंचमी का भी यही संदेश है कि अपने पांच दोषों को मिटाकर जीवन जियो क्योंकि नेकी तभी हृदय में प्रवेश करेगी जब उस से बुराई निकाल देंगे। हृदय की शुद्धता नाम के सुमिरन से होगी। जिस प्रकार दीप जलते ही अंधकार मिट जाता है वैसे ही गुरु ज्ञान रूपी दीप जलाने से अज्ञान रूपी अंधकार मिट जाता है। उन्होंने कहा कि प्रीत करो तो उस से करो जो परमात्मा से प्रीत करते हो वही काम आएगी। राजा बाबू सेठ साहुकार की प्रीत तो स्वार्थ की प्रीत है। परमात्मा से प्रीत सन्त करते हैं इसीलिए सन्त के दर्शन परमात्मा के दर्शन हैं। उन्होंने कहा कि बसंत पंचमी के दिन आप यही संकल्प लो कि आप सतगुरु के प्यारे बनकर अपने मन में अच्छाई भरोगे ताकि आपको सच्ची लगन लगे और आप यह पहचान कर सको कि आप इस जीवन में क्या करने आए थे। संकल्प लो कि दुनियादारी का धन नहीं भक्ति रूपी धन का संचय करोगे। दया धर्म से अपने कर्तव्य निभाकर इस समाज की उन्नति में अपना योगदान दोगे।