एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संंबोधित करते हुए संघशास्ता शासन प्रभावक सुदर्शन लाल महाराज के सुशिष्य संघ संचालक नरेश चंद्र महाराज के आज्ञानुवर्ति मधुरवक्ता नवीन चंद्र महाराज तथा सरलमना श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि समाज में त्याग, तप और प्यार की भावना से ही शांति कायम हो सकती है। त्याग, तप और प्यार की भावना के लिए गुरूओं व संतों की शरण में जाकर उनसे ज्ञान लेना होगा।
सफीदों, नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संंबोधित करते हुए संघशास्ता शासन प्रभावक सुदर्शन लाल महाराज के सुशिष्य संघ संचालक नरेश चंद्र महाराज के आज्ञानुवर्ति मधुरवक्ता नवीन चंद्र महाराज तथा सरलमना श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि समाज में त्याग, तप और प्यार की भावना से ही शांति कायम हो सकती है। त्याग, तप और प्यार की भावना के लिए गुरूओं व संतों की शरण में जाकर उनसे ज्ञान लेना होगा।
गुरूओं से ज्ञान के साथ-साथ संस्कार भी मिलते हैं। जीवन में कोई परेशानी हो तो गुरु हिम्मत प्रदान करते हैं। ईश्वर व परामर्थ के मार्ग पर ले जाने वाला भी गुरु होता है। गुरु-शिष्य परंपरा सदियों से चली आ रही है। एक गुरु जो शिक्षा देता है वो शिष्य का जीवन बदलने का काम करता है। शिक्षा ग्रहण करने के लिए श्रद्धा, समर्पण, लगन और मेहनत की जरूरत होती है। गुरु के प्रति श्रद्धा रखे बिना शिष्य को कभी सही रास्ता नहीं मिल सकता।
उन्होंने कहा कि बड़े ही भाग्य से हमें यह मानव जीवन मिला है, पांच इंद्रिय मिली है हम इन इंद्रियों के विषय कषायों में ना पड़कर इन इंद्रियों का सदुपयोग करें। इंद्रियां हमें विषय का ज्ञान कराती है। पांचों ही इंद्रियों के माध्यम से हमें सुनने, देखने, खाने, गंध व स्पर्श करने आदि विषयों का ज्ञान होता है। मन में अच्छे व बुरे विचारों के भाव चलते रहते हैं। अच्छे व बुरे भाव अपनी इंद्रियों के विषयों के विकार बना देते हैं। किसी भी इंद्रियों के विषय के प्रति राग या द्वेष होना विकार कहलाता है। यह विकार ही कर्म बंधन के कारण बनते हैं। जीवन में हमें भी इंद्रियों के विषय में आशक्त नहीं बनना है।
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