नई दिल्ली5 मिनट पहले
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चुनाव आयोग ने गुरुवार (14 मार्च) को इलेक्टोरल बॉन्ड का सारा डेटा अपनी वेबसाइट पर जारी कर दिया। वेबसाइट में 763 पेजों की दो लिस्ट अपलोड की गई हैं। एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है। दूसरी में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड की डिटेल है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को 15 मार्च तक यह डेटा सार्वजनिक करने का आदेश दिया था।
इससे पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के चेयरमैन दिनेश कुमार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट फाइल की। इसमें बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के 11 मार्च के निर्देश के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी उपलब्ध जानकारी चुनाव आयोग को दे दी गई है।
SBI चेयरमैन ने कहा- हमने ECI को पेन ड्राइव में दो फाइलें दी हैं। एक फाइल में बॉन्ड खरीदने वालों की डिटेल्स हैं। इसमें बॉन्ड खरीदने की तारीख और रकम का जिक्र है। दूसरी फाइल में बॉन्ड इनकैश करने वाले राजनीतिक दलों की जानकारी है। लिफाफे में 2 PDF फाइल भी हैं। ये PDF फाइल पेन ड्राइव में भी रखी गई हैं, इन्हें खोलने के लिए जो पासवर्ड है, वो भी लिफाफे में दिया गया है।
SBI के हलफनामे के अनुसार, एक अप्रैल 2019 से 15 फरवरी 2024 तक 22 हजार 217 इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे गए। इनमें से 22,030 बॉन्ड का पैसा राजनीतिक पार्टियों ने कैश करा लिया है। पार्टियों ने 15 दिन की वैलिडिटी के भीतर 187 बॉन्ड को कैश नहीं किया, उसकी रकम प्रधानमंत्री राहत कोष में ट्रांसफर कर दी गई।
11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने बॉन्ड की जानकारी देने को कहा था
इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से जुड़े केस में SBI की याचिका पर 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने करीब 40 मिनट सुनवाई की थी। SBI ने कोर्ट से कहा था- बॉन्ड से जुड़ी जानकारी देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए। इस पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा- पिछली सुनवाई (15 फरवरी) से अब तक 26 दिनों में आपने क्या किया?
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा- SBI 12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करे। इलेक्शन कमीशन सारी जानकारी को इकट्ठा कर 15 मार्च शाम 5 बजे तक इसे वेबसाइट पर पब्लिश करे।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी थी। साथ ही SBI को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी 6 मार्च तक इलेक्शन कमीशन को देने का निर्देश दिया था।
4 मार्च को SBI ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था। इसके अलावा कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की उस याचिका पर भी सुनवाई की, जिसमें 6 मार्च तक जानकारी नहीं देने पर SBI के खिलाफ अवमानना का केस चलाने की मांग की गई थी।
11 मार्च को कोर्ट रूम में क्या हुआ, सिलसिलेवार पढ़िए…
SBI: सीनियर वकील हरीश साल्वे ने कहा कि मैं स्टेट बैंक की ओर से आया हूं। हमें आपके आदेश को पूरा करने के लिए कुछ और वक्त चाहिए। SBI ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने बंद कर दिए हैं।
SBI: हमारे सामने एक समस्या आ रही है, हम पूरी प्रक्रिया को पलटने की कोशिश कर रहे हैं। SOP बनाई गई थी कि हमारे कोर बैंकिंग सिस्टम में बॉन्ड खरीदने वाले का नाम ना हो। हमें कहा गया था कि इसे गुप्त रखना है।
CJI: आपकी एप्लिकेशन देखिए। आप कह रहे हैं कि डोनर की डिटेल संबंधित ब्रांच में सीलबंद लिफाफे में होती है। ऐसे सभी सील कवर डिपॉजिट मुंबई की मुख्य शाखा में भेज दिए जाते हैं और दूसरी तरफ 29 अधिकृत बैंकों से डोनेशन हासिल कर सकते हैं।
CJI: आप कह रहे हैं कि डोनेशन देने वाले और पॉलिटिकल पार्टी, दोनों के डिटेल्स मुंबई ब्रांच में भेजी जाती है। यानी दो तरह की जानकारियां हैं। आप कह रहे हैं कि इन सूचनाओं का मिलान करना वक्त लेने वाली प्रक्रिया है। हमारे आदेश में हमने सूचनाओं के मिलान की बात नहीं कही है। हमने सूचनाओं को जाहिर करने की बात कही है।
SBI: जब बॉन्ड खरीदे जाते हैं तो हम जानकारी बांट देते हैं।
CJI: लेकिन आखिकार सारी जानकारी मुंबई की मुख्य शाखा में भेजे जाते हैं।
SBI: केवल बॉन्ड नंबर ही स्पष्ट रहता है। बॉन्ड नंबर का इस्तेमाल ही आगे खरीद के लिए होता है। और ऐसा इसलिए किया जाता है कि ऐसी चर्चाएं ना उठें कि इन-इन लोगों ने बॉन्ड खरीदे हैं।
CJI: आपके FAQs भी बताते हैं कि हर खरीद के लिए अलग KYC होती है। यानी जब-जब इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा जाता है, KYC जरूरी होती है।
जस्टिस खन्ना: आप कहते हैं कि सारी जानकारी एक सीलबंद लिफाफे में होती है। आपको सिर्फ लिफाफा खोलना है और जानकारी दे देनी है।
SBI: मेरे पास यह पूरी जानकारी है कि बॉन्ड किसने खरीदे हैं। यह एक जगह है। एक और जानकारी है कि किस राजनीतिक दल ने बॉन्ड कैश किया। यह कोई समस्या नहीं है।
CJI: हमने 15 फरवरी को फैसला दिया था। आज 11 मार्च हो गई है। पिछले 26 दिनों में आपने क्या कदम उठाए हैं। कुछ भी नहीं बताया गया है। आपको जानकारी देनी चाहिए। आपको स्पष्टता दिखानी थी।
SBI: हम एफिडेविट दे सकते हैं, लेकिन हम आपको नंबर्स की जानकारी देने की जल्दबाजी में गलती नहीं कर सकते। यही समस्या है।
जस्टिस खन्ना: आप कह रहे हैं कि डोनर और किस पार्टी को डोनेशन दिया गया है, ये जानकारी आप दे सकते हैं। आपकी समस्या सिर्फ दोनों जानकारियों का मिलान करना है। 26 दिन बीत गए। कुछ तो हुआ होगा। ये भी बताया गया है कि इन बॉन्ड्स के कुछ नंबर हैं।
SBI: ये नंबर गुप्त रखे गए हैं। इन्हें सामने रखने के लिए हर ट्रांजैक्शन को ट्रेस करने की जरूरत होगी।
CJI: ECI ने हमारे आदेश का पालन करते हुए, हमें डिटेल्स दीं। रजिस्ट्री ने इसे सुरक्षित जगह रखा। हम उन्हें इसे तुरंत खोलने का आदेश देते हैं। हम ECI से कहेंगे कि जो भी जानकारी है, उसे सामने लाइए और SBI भी जो कुछ उसके पास हो, उसे प्रकाशित करें।
CJI: हम चुनाव आयोग (ECI) को निर्देश देते हैं कि जानकारियों का खुलासा कीजिए। मिस्टर साल्वे आप भी आदेशों का पालन करें।
SBI: हम कोई गलती करके कोई हंगामा नहीं मचाना चाहते हैं।
जस्टिस खन्ना: यहां किसी गलती का सवाल ही नहीं है। आपके पास KYC है। आप देश के नंबर एक बैंक हैं। हम मानते हैं कि आप यह संभाल लेंगे।
CJI: एक बैंक का असिस्टेंट जनरल मैनेजर एक एफिडेविट फाइल करेगा और इस कोर्ट की संविधान पीठ से कहेगा कि अपने आदेश में बदलाव करिए!
SBI: वही व्यक्ति है, जिसे यह करना है। कृपया हमें थोड़ा सा वक्त दीजिए, हम यह कर देंगे। अगर बॉन्ड खरीद और डोनेशन पाने वाली पार्टियों का मिलान नहीं करना है तो हम 3 हफ्ते में सब कुछ दे देंगे।
जस्टिस गवई: आपको 3 हफ्ते किसलिए चाहिए?
जस्टिस खन्ना: राजनीतिक दलों ने पहले ही डोनेशन के बारे में जानकारी दे दी है। बॉन्ड खरीदने वालों की भी जानकारी मौजूद है।
कोर्ट ने फैसला सुनाया: करीब 40 मिनट के बाद कोर्ट ने फैसला लिखना शुरू किया। कोर्ट ने SBI को 12 मार्च तक इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने का आदेश देते हुए 30 जून तक समय देने वाली याचिका खारिज कर दी। इसके अलावा चुनाव आयोग से कहा कि वे सारी जानकारी इकट्ठा कर 15 मार्च शाम 5 बजे तक वेबसाइट पर पब्लिश करें।
2 याचिकाएं और दोनों पक्षों की सुप्रीम कोर्ट में दलील
- SBI की अपील- जानकारी जुटाने के लिए और वक्त चाहिए- कोर्ट ने SBI को 6 मार्च तक चुनाव आयोग को जानकारी देने का निर्देश दिया था। लेकिन 4 मार्च को ही SBI ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। जिसमें कहा कि राजनीतिक दलों के इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी का खुलासा करने के लिए 30 जून तक का समय दिया जाए। SBI ने कहा कि उन्हें डिटेल निकालने के लिए और समय चाहिए।
- ADR की आपत्ति- SBI के पास बॉन्ड का यूनीक नंबर, फिर देर क्यों- ADR ने 7 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर दी। ADR ने कहा कि SBI का मोहलत मांगना इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है। SBI का IT सिस्टम इसे आसानी से मैनेज कर सकता है। हर बॉन्ड में एक यूनीक नंबर होता है। इसके जरिए रिपोर्ट तैयार कर इलेक्शन कमीशन को दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड पर पिछली 5 सुनवाई में क्या-क्या हुआ था
- 15 फरवरी 2024 : सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- यह स्कीम असंवैधानिक है। बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। पढ़ें पूरी खबर…
- 2 नवंबर 2023: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम केस में फैसला सुरक्षित रख लिया। हालांकि, अगली सुनवाई की तारीख नहीं बताई गई। कोर्ट ने पार्टियों को मिली फंडिंग का डेटा नहीं रखने पर चुनाव आयोग से नाराजगी जताई। साथ ही आयोग से राजनीतिक दलों को 30 सितंबर तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिली रकम की जानकारी जल्द से जल्द देने का निर्देश दिया है। पढ़ें पूरी खबर…
- 1 नवंबर 2023: सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता आई है। चंदा देने वाले नहीं चाहते कि उनके दान देने के बारे में दूसरी पार्टी को पता चले। इससे उनके प्रति दूसरी पार्टी की नाराजगी नहीं बढ़ेगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसी बात है तो फिर सत्ताधारी दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है? विपक्ष क्यों नहीं ले सकता चंदे की जानकारी? पूरी खबर पढ़ें …
- 31 अक्टूबर 2023: प्रशांत भूषण ने दलीलें रखी थीं। उन्होंने कहा था कि ये बॉन्ड केवल रिश्वत हैं, जो सरकारी फैसलों को प्रभावित करते हैं। अगर किसी नागरिक को उम्मीदवारों, उनकी संपत्ति, उनके आपराधिक इतिहास के बारे में जानने का अधिकार है, तो उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है? पूरी खबर पढ़ें…
चुनावी बॉन्ड स्कीम क्या है
चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। इसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।
विवादों में क्यों आई चुनावी बॉन्ड स्कीम
2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।
बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।
बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
कोई भी इंडियन खरीद सकता था, 15 दिन की वैलिडिटी
सुप्रीम कोर्ट के तत्काल रोक लगाने से पहले चुनावी बॉन्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई 29 ब्रांच में मिल रहे थे। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता था। बशर्ते बॉन्ड पाने वाली पार्टी इसके काबिल हो।
खरीदने वाला हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता था। इसके लिए उसे बैंक को अपनी पूरी KYC देनी होती। जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट किया जाता, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिलना अनिवार्य था।
डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर, बॉन्ड पाने वाला राजनीतिक दल इसे चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवा लेता था। नियमानुसार कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता है। बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलती है। ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं।
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