इलेक्टोरल बॉन्ड से BJP को सबसे ज्यादा 6,060 करोड़ चंदा: किसने कितना दिया पता नहीं, चुनाव आयोग ने 763 पेजों की 2 लिस्ट अपलोड कीं

नई दिल्ली19 मिनट पहले

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चुनाव आयोग ने गुरुवार (14 मार्च) को इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा अपनी वेबसाइट पर जारी किया। वेबसाइट पर 763 पेजों की दो लिस्ट अपलोड की गई हैं। एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है। दूसरी में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड की डिटेल है।

चुनावी बॉन्ड का डेटा 12 अप्रैल 2019 से 11 जनवरी 2024 तक का है। राजनीतिक पार्टियों को सबसे ज्यादा चंदा देने वाली कंपनी फ्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज पीआर है, जिसने 1,368 करोड़ के बॉन्ड खरीदे। कंपनी ने ये बॉन्ड 21 अक्टूबर 2020 से जनवरी 24 के बीच खरीदे। कंपनी के खिलाफ लॉटरी रेगुलेशन एक्ट 1998 के तहत और आईपीसी के तहत कई मामले दर्ज हैं।

भाजपा सबसे ज्यादा चंदा लेने वाली पार्टी है। भाजपा को सबसे ज्यादा 6,060 करोड़ रुपए मिले हैं। चुनावी बॉन्ड इनकैश कराने वाली पार्टियों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, AIADMK, बीआरएस, शिवसेना, TDP, YSR कांग्रेस, डीएमके, JDS, एनसीपी, जेडीयू और राजद भी शामिल हैं।

चुनाव आयोग ने https://eci.gov .in/candidate-politicparty पर चुनावी बॉन्ड का डेटा अपलोड किया है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को 15 मार्च तक डेटा सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। इससे पहले भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने 12 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट में डेटा सबमिट किया था। कोर्ट के निर्देश पर SBI ने चुनाव आयोग को बॉन्ड से जुड़ी जानकारी दी थी।

किसने-किसको चंदा दिया, यह पता नहीं चलता

  • दोनों लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों और इन्हें इनकैश कराने वालों के तो नाम हैं, लेकिन यह पता नहीं चलता कि किसने यह पैसा किस पार्टी को दिया?
  • इस मामले में याचिका लगाने वाले ADR के वकील प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया कि एसबीआई ने वह यूनिक कोड नहीं बताया, जिससे पता चलता कि किसने-किसे चंदा दिया। ऐसे में कोड की जानकारी के लिए वे फिर सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
  • कांग्रेस ने इलेक्टोरल बॉन्ड के डेटा पर सवाल उठाए हैं। पार्टी ने कहा, दानदाताओं और इसे लेने वालों के आंकड़े में अंतर है। दानदाताओं में 18,871 एंट्री है, जबकि लेने वालों में 20,421 की एंट्री है। पार्टी ने यह भी पूछा है कि यह योजना 2017 में शुरू हुई थी तो इसमें अप्रैल 2019 से ही डेटा क्यों है?
  • आयोग का कहना है कि उसे यह जानकारी एसबीआई से ऐसी ही मिली है। 2019 से 2024 के बीच 1334 कंपनियों-लोगों ने कुल 16,518 करोड़ रु. के बॉन्ड खरीदे। 27 दलों ने भुनाए।

भाजपा को 1-1 करोड़ कीमत वाले 5854 बाॅन्ड मिले

पार्टी 1 करोड़ 10 लाख एक लाख 10 हजार 1 हजार कुल
भाजपा 5854 1994 706 48 31 8633
तृणमूल 1467 1354 410 30 14 3305
कांग्रेस 1318 958 800 65 5 3146
बीआरएस 1181 310 267 39 9 1806
बीजद 766 95 860

SBI के चेयरमैन दिनेश कुमार ने बुधवार, 13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट फाइल की थी। उन्होंने इसमें कहा- हमने ECI को पेन ड्राइव में दो फाइलें दी हैं। एक फाइल में बॉन्ड खरीदने वालों की डिटेल्स हैं। इसमें बॉन्ड खरीदने की तारीख और रकम का जिक्र है। दूसरी फाइल में बॉन्ड इनकैश करने वाले राजनीतिक दलों की जानकारी है।

लिफाफे में 2 PDF फाइल भी हैं। ये PDF फाइल पेन ड्राइव में भी रखी गई हैं, इन्हें खोलने के लिए जो पासवर्ड है, वो भी लिफाफे में दिया गया है। एफिडेविट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट को दिया गया डेटा 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच खरीदे और इनकैश कराए गए बॉन्ड का है।

SBI के मुताबिक, 1 अप्रैल से 11 अप्रैल, 2019 तक 3 हजार 346 चुनावी बॉन्ड खरीदे गए थे। इनमें 1 हजार 609 इनकैश कराए गए। 1 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच कुल 22 हजार 217 बॉन्ड खरीदे गए। 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 तक कुल खरीदे गए चुनावी बॉन्ड की संख्या 18,871 थी। इनमें 20 हजार 421 बॉन्ड इनकैश कराए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 मार्च को SBI को डेडलाइन दी थी

इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से जुड़े केस में SBI की याचिका पर 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी। SBI ने कोर्ट से कहा था- बॉन्ड से जुड़ी जानकारी देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए। इस पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा- पिछली सुनवाई (15 फरवरी) से अब तक 26 दिनों में आपने क्या किया?

सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा- SBI 12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करे। इलेक्शन कमीशन सारी जानकारी को इकट्ठा कर 15 मार्च शाम 5 बजे तक इसे वेबसाइट पर पब्लिश करे।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी थी। साथ ही SBI को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी 6 मार्च तक इलेक्शन कमीशन को देने का निर्देश दिया था।

4 मार्च को SBI ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था। इसके अलावा कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की उस याचिका पर भी सुनवाई की, जिसमें 6 मार्च तक जानकारी नहीं देने पर SBI के खिलाफ अवमानना का केस चलाने की मांग की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड पर पिछली 5 सुनवाई में क्या-क्या हुआ था

  • 15 फरवरी 2024 : सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- यह स्कीम असंवैधानिक है। बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। पढ़ें पूरी खबर…
  • 2 नवंबर 2023: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम केस में फैसला सुरक्षित रख लिया। हालांकि, अगली सुनवाई की तारीख नहीं बताई गई। कोर्ट ने पार्टियों को मिली फंडिंग का डेटा नहीं रखने पर चुनाव आयोग से नाराजगी जताई। साथ ही आयोग से राजनीतिक दलों को 30 सितंबर तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिली रकम की जानकारी जल्द से जल्द देने का निर्देश दिया है। पढ़ें पूरी खबर…
  • 1 नवंबर 2023: सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता आई है। चंदा देने वाले नहीं चाहते कि उनके दान देने के बारे में दूसरी पार्टी को पता चले। इससे उनके प्रति दूसरी पार्टी की नाराजगी नहीं बढ़ेगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसी बात है तो फिर सत्ताधारी दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है? विपक्ष क्यों नहीं ले सकता चंदे की जानकारी? पूरी खबर पढ़ें …
  • 31 अक्टूबर 2023: प्रशांत भूषण ने दलीलें रखी थीं। उन्होंने कहा था कि ये बॉन्ड केवल रिश्वत हैं, जो सरकारी फैसलों को प्रभावित करते हैं। अगर किसी नागरिक को उम्मीदवारों, उनकी संपत्ति, उनके आपराधिक इतिहास के बारे में जानने का अधिकार है, तो उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है? पूरी खबर पढ़ें…

चुनावी बॉन्ड स्कीम क्या है?
चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। इसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।

विवादों में क्यों आई चुनावी बॉन्ड स्कीम?
2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।

बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।

बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।

कोई भी इंडियन खरीद सकता था, 15 दिन की वैलिडिटी
सुप्रीम कोर्ट के तत्काल रोक लगाने से पहले चुनावी बॉन्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई 29 ब्रांच में मिल रहे थे। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता था। बशर्ते बॉन्ड पाने वाली पार्टी इसके काबिल हो।

खरीदने वाला हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता था। इसके लिए उसे बैंक को अपनी पूरी KYC देनी होती थी। जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट किया जाता, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिलना अनिवार्य था।

डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर, बॉन्ड पाने वाला राजनीतिक दल इसे चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवा लेता था। नियमानुसार कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता है। बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलती है। ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं।

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