एस• के• मित्तल
सफीदों, इंसान खुद को सुधार ले तो संपूर्ण समाज सुधर जाएगा। यह बात माउंटआबू से पधारे ब्रह्माकुमार भ्राता ओमकार ने कही। वे नगर के प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय सफीदों के हैप्पी हाल चल रहे खुशियों से दोस्ती उत्सव को बतौर मुख्यवक्ता संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर सफीदों सैंटर इंचार्ज बहन स्नेहलता ने भ्राता ओमकार का अभिनंदन किया। इस मौके पर भ्राता सुनील शर्मा व भ्राता सुनील कुमार विशेष रूप से मौजूद थे।
सफीदों, इंसान खुद को सुधार ले तो संपूर्ण समाज सुधर जाएगा। यह बात माउंटआबू से पधारे ब्रह्माकुमार भ्राता ओमकार ने कही। वे नगर के प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय सफीदों के हैप्पी हाल चल रहे खुशियों से दोस्ती उत्सव को बतौर मुख्यवक्ता संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर सफीदों सैंटर इंचार्ज बहन स्नेहलता ने भ्राता ओमकार का अभिनंदन किया। इस मौके पर भ्राता सुनील शर्मा व भ्राता सुनील कुमार विशेष रूप से मौजूद थे।
अपने संबोधन में भ्राता ओमकार ने कहा कि आज प्राय: समाज में देखने में आ रहा है कि समाज में आपसी तालमेल, विश्वास, इज्जत व रिश्ते समाप्त होते जा रहे हैं। ऐसे में सोचने की आवश्यकता है कि ये रिश्ते और विश्वास क्यों टूटे रहे हैं, कहां कठिनाईयां पैदा हो रही हैं, क्यों टकराव पैदा हो रहा है और क्यों हम आपस में इकट्ठे नहीं रह पा रहे हैं। कई बार देखने में आता है कि दूसरों को छोड़ो अपने ही लोग जीवन में प्राब्लम दे देते हैं और कदम-कदम पर पीड़ा पैदा करते हैं और ये वे लोग होते है जिसके लिए किसी ने कितना ही अच्छा क्यों ना किया हो। पहले घर-परिवार तथा आस-पडौस एक आश्रम व स्वर्ग के समान हुआ करते थे लेकिन वर्तमान दौर में वह स्वर्ग रूपी घर, पडौस व समाज नरक के समान होते चले जा रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण स्वार्थ, अहंकार, लालच की भावना तथा सहनशीलता की कमी है।
इसके अलावा खाने-पीने का अंतर बढ़ना, छोटे-बड़े का अंतर खत्म होना और इगो का आड़े आना भी मुख्य कारक हैं। आज इंसान अपने दुख से दुखी ना होकर दूसरे के सुख को देखकर अधिक दुखी है। इंसान खुद को कंट्रोल करने की बजाए दूसरे को कंट्रोल करने की कोशिश में लगा है। मनुष्य खुद के बारे में ना सोचकर दूसरों के बारे में अधिक सोचकर कहीं ना कहीं अपनी एनर्जी बर्बाद कर रहा है। यह कटु सत्य है कि अगर मनुष्य को खुद को नियंत्रित नहीं रख सकता है तो उसे दूसरे को कोई सलाह या नियंत्रण करने का अधिकार नहीं है। आप किसी को समझा या प्रेरित तो कर सकते हो लेकिन उस पर दबाव नहीं डाल सकते है। अगर समाज, घर-परिवार व आस-पड़ौस को सुधारना है तो इंसान को पहले खुद सुधरना होगा।
उन्होंने सास-बहु का उदाहरण देते हुए कहा कि जब सास बहु थी तब वह अपनी सास की उगंलियों पर नाचने को तैयार नहीं थी लेकिन जब बहु सास बन गई और उसके घर में बेटे की बहु आ गई तो वह उसे अपने इशारों पर नचाना चाहती है, इस अंतर को हम सबकों समझना होगा। उन्होंने कहा कि पहले हमें अपने आपको बदलना होगा, तब हम दूसरों को सुधार पाएंगे। इसके अलावा इंसान को नकारात्मक ना रहकर सदैव सकारात्मक रहना चाहिए। हमें दूसरों के बजाय पहले खुद की सोच को सकारात्मक बनाना होगा। सकारात्मक सोच परिस्थितियों में ही नहीं दृष्टिकोण में बदलाव लाती है।