भगवान महावीर और श्री कृष्ण के जीवन में कई समानताएं हैं: मुनि नवीन चंद्र

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एस• के• मित्तल   
सफीदों,      नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि भगवान महावीर और श्री कृष्ण के जीवन में कई समानताएं हैं। जन्माष्टमी के दिन कृष्ण वासुदेव का जन्म हुआ था। सबसे ज्यादा पुण्यशाली पार्शवनाथ भगवान है। चक्रवर्ती में सबसे ज्यादा पुण्यशाली भरत चक्रवर्ती है। नौ वासुदेव में सबसे ज्यादा पुण्यशाली कृष्ण वासुदेव है।
जैन सिद्धांत के अनुसार जहां भगवान अरिष्ठनेमी का शासन आता है, वहां कृष्ण वासुदेव जुड़े हुए हैं। भगवान महावीर और कृष्ण वासुदेव के जीवन में कई समानताएं इसलिए हैं कि कृष्ण की भी दो माता, महावीर की भी दो माता, भगवान महावीर ने चंडकौशिक नाग को बोध दिया। कृष्ण ने कालिया नाग मर्दन किया। भगवान महावीर ने चंदनबाला को तारा, कृष्ण वासुदेव ने द्रोपदी की लाज की रक्षा की। भगवान महावीर ने आगम के माध्यम के लिए गौतम स्वामी को चुना। कृष्ण ने युद्ध भूमि में अर्जुन को चुना और श्रीमद् भगवत गीता का उपदेश दिया। ऐसी अनेक समानता भगवान महावीर व श्रीकृष्ण में है। उन्होंने कहा कि हम सबको श्रीकृष्ण के जीवन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। श्रीकृष्ण तीन खंड के अधिपति थे, पर वे सुंदर सद्गुणों के धनी गुण ग्राही रहे।
उन्होंने बताया कि जैन शास्त्रों में श्री कृष्ण को अतिविशिष्ट पुरुष के रूप में चित्रित किया गया है। जैन आगमों में 63 शलाका पुरुष माने गए हैं। जिनमें 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 वासुदेव तथा 9 प्रति वासुदेव हैं। नेमिनाथ (अरिष्ट नेमि) 22वें तीर्थंकर तथा श्री कृष्ण नौवें अंतिम वासुदेव हैं। उन्होंने कहा कि गीता में हिंसात्मक यज्ञ आदि का निषेध है तथा समन्वय की प्रधानता है। इधर, अहिंसा जैन धर्म का सबसे बड़ा सिद्धांत अंहिसा है। नेमिनाथ और श्री कृष्ण के विचार बहुत मिलते-जुलते हैं। यह दोनों महापुरुषों के घनिष्ठ संबंध का प्रबल प्रमाण है। महापुरुष किसी संप्रदाय विशेष की धरोहर नहीं होते। उनका व्यक्तित्व तो सूर्य-चंद्रमा की भांति सार्वभौमिक होता है। उन्हें किसी परिधि में सीमित करना उचित नहीं।
 
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