Advertisement
पशु में बीमारी के लक्षण प्रतीत होने पर नजदीक के पशु अस्पताल से अपने पशु का करवाएं इलाज
जिला में पशु मेलों पर लगाई गई रोक
एस• के • मित्तल
जींद, उपायुक्त डाॅ•. मनोज कुमार ने बताया कि जिला की गौशालाओ में कुछ गौवंश में लम्पी स्किन डिजीज (एलएसडी) का प्रकोप देखा गया है। ऐसे में जिला के गौशाला संचालक व पशुपालक अपने पशुओं की देखभाल में सावधानी बरतें। लम्पी स्किन संक्रामक बीमारी है। उन्होंने बताया कि जिस भी गौवंश, पशु में इस बीमारी के लक्षण दिखे तो पशुओं को एहतियात के तौर पर एक दूसरे से दूर रखना जरूरी है।
जींद, उपायुक्त डाॅ•. मनोज कुमार ने बताया कि जिला की गौशालाओ में कुछ गौवंश में लम्पी स्किन डिजीज (एलएसडी) का प्रकोप देखा गया है। ऐसे में जिला के गौशाला संचालक व पशुपालक अपने पशुओं की देखभाल में सावधानी बरतें। लम्पी स्किन संक्रामक बीमारी है। उन्होंने बताया कि जिस भी गौवंश, पशु में इस बीमारी के लक्षण दिखे तो पशुओं को एहतियात के तौर पर एक दूसरे से दूर रखना जरूरी है।
उपायुक्त द्वारा धारा 144 के तहत जिला में पशुमेलों पर पूर्णतया रोक लगा दी गई है। इसके अलावा बीमारी को मद्देनजर रखते हुए पशुओं को एक से दूसरी जगह पर लाने व लेजाने तथा चरवाहे व ग्वालों पर जिला में प्रवेश करने पर पूर्णतय पाबंधी लगा दी गई है। पशुपालन एवं डेयरी विभाग के जिला जींद के डिप्टी डायरेक्टर डाॅ• रविन्द्र हुड्डा ने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज (एलएसडी) गौजातीय पशुओं में चमड़ी का रोग है जो लम्पी स्किन डिजीज वायरस के कारण होता है। उन्होंने पशुपालकों से अपील करते हुए कहा है कि पशुपालक रोग प्रभावित क्षेत्र से पशु ना खरीदें। यह गौवंश और भैंसों को प्रभावित करने वाली एक संक्रामक, छूत और आर्थिक महत्व की बीमारी है। यह चमड़ी और शरीर के अन्य भागों में गांठ बनने के उपरान्त फटने से बने घावों के कारण कभी-कभी घातक भी हो सकती है। आमतौर पर, बुखार, भूख न लगना, और मुंह, नाक, थन, जननांग, मलाशय की त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली पर गांठे बनना, दूध उत्पादन में कमी, गर्भपात, बांझपन और कभी-कभी मृत्यु इस रोग की नैदानिक अभिव्यक्तियां हैं ।
द्वितीयक जीवाणु संक्रमण होने से प्रभावित पशुओं की स्थिति और खराब हो जाती है। पीडि़त पशु के शरीर पर गांठे बनने के कारण इस रोग को गांठदार या ढेलेदार चमड़ी रोग भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि एलएसडी प्रभावित किसी भी पशु में लम्पी स्किन डिजीज होने पर अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय से ईलाज करवाएं। बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग करें और घावों के उपचार एवं मक्खियों को दूर करने के लिए कीट विकर्षक, एंटीसेप्टिक दवा लगाएं। श्री हुड्डा ने बताया कि जिला की सभी गौशालाओं में कीटाणुरोधी दवा का छिडक़ाव व फोगिंग करवाई गई है। उन्होंने गौशाला संचालकों से आह्वान किया कि यदि किसी कारणवश कोई गौवंश मर जाता है तो उसको 8 से 10 फीट गहरे गढ्ढे में दफनाएं
Advertisement