शांति पाने के लिए अमीरी-गरीबी का कोई रोल नहीं है: मुनि नवीन चंद्र

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एस• के• मित्तल 

सफीदों, नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि इस संसार में यह जरूरी नहीं कि गरीब आदमी ही दुखी हो, अमीर व्यक्ति भी अनेक कारणों से दुखी रहते हैं।

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गरीब दो रोटी पानी पाने के लिए मीलो दूर चला है, जबकि अमीर आदमी रोटी पचाने के लिए मीलो दूर चलता है। इसका तात्पर्य यह है कि अभाव में भी मन में शांति पाई जा सकती है। शांति पाने के लिए अमीरी-गरीबी का कोई रोल नहीं है। उन्होंने कहा कि अहिंसा साधु के लिए वर्जित है लेकिन श्रावक के लिए श्रद्धा है। साधु झूठ नहीं बोलेंगे लेकिन श्रावक झूठ बोल लेता है। साधु चोरी नहीं करते लेकिन श्रावक चोरी कर लेता है। व्रत मनुष्य को पाप कर्मों से बचाते हैं। मन में मजबूती हो तो नियम पालने में कोई दिक्कत नहीं होती है। एक समय ऐसा था जब नारी को भोग की वस्तु समझा जाता था लेकिन भगवान महावीर के राज्य में नारी को मोक्ष का अधिकारी बताया गया है।

 

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इसके अलावा भगवान महावीर ने नारी को दीक्षित किया। जैन धर्म के नियम कठोर हैं। सूर्य छिपते ही साधु अपने तो साध्वी अपने रास्ते पर चले जाते हैं। धर्म में रूचि इंसान को पाप से बचाए रखती है। उन्होंने कहा कि भोग वासना किसी भी समय व्यक्ति को अंधा बना सकती है। मैथुन शब्द मिथुन से बना है। मिथुन का मतलब है जोड़े से होता है और वह जोड़ा काम से जुड़ा हुआ है। 12 राशियों में मिथुन तीसरी राशि है। जिसके अंदर काम वृति छिपी हुई है। मोह ममता व कामवासना होने से कारण मनुष्य संसार का त्याग नहीं कर सकता। अब साधु जीवन अपनाना है तो मनुष्य को सरल प्रवृत्ति रखनी होगी। जहां पर राग है, वहां पर संसार है।

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इस राग और संसार में मोह माया व कामवासना का त्याग करना बेहद मुश्किल है और इनसे बचाव के लिए मनुष्य को दृढ़ निश्चियी होना होगा। मनुष्य का मोह टूटेगा तो तभी संयम पैदा होगा। धर्म हमारे मन में होगा तो त्याग के भाव जरूर आएंगे।

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