एस• के• मित्तल
सफीदों, उपमंडल के गांव कुरड़ स्थित गुरू गौरखनाथ आश्रम में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए भक्त हरिराम ने कहा कि जो व्यक्ति संकल्प लेकर अपना जीवन व्यतीत करता है, वही व्यक्ति संयम व्रत धारण करता है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में दो आयाम योग और भोग होते हैं। अगर आप त्याग, तपस्या, संयम अपने जीवन में लाओगे, उतनी ही जीवन की यात्रा परमात्मा की ओर ले जाएगी। अगर बिना त्याग, तपस्या, संयमित जीवन जियोगे तो जीवन जानवरों जैसा हो जाएगा, क्योंकि सभी कार्य संकल्प से हुआ करते हैं। कोई भी जीव नरक या स्वर्ग की यात्रा अपने संकल्प से ही करता है। उन्होंने कहा कि जब माली बगीचे में कोई पौधा या बेल लगाता है तो उस बेल को रस्सी से ऊपर बांध देता। जिस प्रकार बेल को ऊंचाई पर चढऩे के लिए बांधना पड़ता है तो हमें भी ऊंचाई पर चढऩे के लिए संयम के बंधन में बंधना बहुत जरूरी होता है। उन्होंने कहा कि धर्मिक क्षेत्र के अलावा व्यावहारिक क्षेत्र के प्रतिदिन किए जाने वाले कार्यक्लापों में भी भावना की आवश्यकता जरूरी है। दिन भर में खाने-पीने बोलने, चलने, मिलने, जुलने सभी कार्यों में अगर भीतरी भाव शुद्ध हो तो वे कार्य सफल होते हैं। इसके विपरीत चाहे ऊपरी रूप से कार्य संपन्न भी हो जाएं, ऊंचे से ऊंचा खाना खा भी लिया हो, मीठे से मीठा बोल भी लिया हो, लेकिन भीतर भावना न हो तो सामने वाले का दिल नहीं जीता जा सकता।