सफीदों, (एस• के• मित्तल) : नगर के गीता मंदिर में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कथा व्यास अरविंद शास्त्री ने कहा कि शुकदेव जन्म, परीक्षित श्राप और अमर कथा का श्रवण कराते हुए कहा कि श्री शुकदेव जी ने जन्म से पूर्व ही यह अमरकथा सुन ली थी। माता के गर्भ में बारह वर्षों तक रहने के पश्चात जब वे बाहर आए तो ऐसा वैराग्य उत्पन्न हुआ कि एक क्षण भी देर न करते हुए तुरंत वन को प्रस्थान कर गए। भगवान शिव के मुख से पूर्णमनोयोग से यह कथा सुनने के कारण ही मायामुक्त महात्मा श्री शुकदेवजी का भगवान शंकर का कोप भी कुछ नहीं बिगाड़ सका और वे अमर हो गए। यह तो ऐसी दिव्य कथा है जिसके श्रवण मात्र से अघोर पापों से युक्त प्राणी भी धुंधकारी के समान पुष्पक विमान में बैठकर बैंकुंठधाम को जाता है। यह कथा पद, प्रतिष्ठा, जाति, धर्म, संप्रदाय आदि से ऊपर है, निष्पक्ष है, कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। अत: व्यक्ति को चाहिए कि शुकदेवजी का अनुकरण कर कथारूपी इस जीवन सूत्र में स्वयं को पिरोकर अपने कल्याण का मार्ग प्रशस्त करें। तभी इसकी सार्थकता सिद्ध हो सकती है। उन्होंने कहा कि मृत्यु को जानने से मृत्यु का भय मिट जाता है। परीक्षित ने भागवत कथा का श्रवण कर अभय को प्राप्त किया वैसे ही भागवत जीव को अभय बना देती है। श्रीमद् भागवत कथा परमात्मा का अच्छा स्वरूप है। भागवत कथा भगवान के प्रति अनुराग उत्पन्न करती है। यह कथा रूपी अमृत देवता को भी दुर्लभ है।
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