श्रीमद्भागवत कथा का अमृतपान करने से पापों का नाश होता है: डा. शंकरानंद सरस्वती

एस• के• मित्तल   
सफीदों,  नगर के महाभारतकालीन नागक्षेत्र तीर्थ के मंदिर हाल में भक्ति योग आश्रम के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद् भागवत अमृत कथा में व्यास पीठ से श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए स्वामी डा. शंकरानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत का पठन व पाठन सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाता है। श्रीमद् भागवत प्रतिदिन घर में पाठ करने से सुख-समृद्धि आती है।
सभी प्रकार की समस्याओं का हल करने की शक्ति मिलती है और आत्मविश्वास बढ़ता है। श्रीमद् भागवत कथा के 7 दिन तक श्रवण करने से जो जागृति आती है उसे भक्ति रस उत्पन्न होता है और भक्ति रस ही मानव को प्रभु से मिलाता है। प्रभु के रंग में रंगकर ही सर्वत्र मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। उन्होंने कहा की राजा परीक्षित से पूछा की स्वर्ग का अमृत पीना चाहते हो अथवा कथा अमृत। राजा द्वारा अंतर पूछने पर सुखदेव जी ने दोनों का अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि स्वर्ग का अमृत पीने से सुख तो मिलता है परंतु पापों का क्षय नहीं होता है।
जबकि श्रीमद्भागवत कथा का अमृतपान करने से पापों का नाश होता है। इसलिए राजा परीक्षित ने महर्षि शुकदेव जी से शुक्रताल में बैठकर सात दिनों तक श्रीमद्भागवत कथा का अमृत पान किया था। जन्म-जन्म के पुण्य अर्जित होने के पश्चात मनुष्य को श्रीमद् भागवत कथा सुनने का अवसर प्राप्त होता है। श्रीमद् भागवत पुराण कोई पुस्तक नहीं है। वह भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण शरीर है। यह ज्ञानियों का चिंतन, संतो का मनन, भक्तों का वंदन तथा भारत की धड़कन है। भागवत अमृत की भांति है, इसके सुनने से मनुष्य भवसागर में तर जाता जाता है। इसके सुनने से मनुष्य भवसागर से तर जाता है।

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