गुरू अपनी शिक्षाओं द्वारा मनुष्य को भव से पार लगाते हैं: मुनि नवीन चंद्र

एस• के• मित्तल 
सफीदों,     नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि जीवन में गुरू का विशेष महत्व है। गुरू मनुष्य को अपनी शिक्षाओं के द्वारा भव से पार लगाते हैं। मनुष्य को अपना जीवन, घर व परिवार कल्प वृक्ष के समान बनाना चाहिए और यह कार्य गुरूओं के सानिध्य में रहकर ही हो सकता है।
गुरूओं की आदर्श व शिक्षा दर्पण के समान है। गुरुओं के पास रहकर हम उनके जीवन को देखेंगे और उनके भावों व आचरण में अपने जीवन में उतारेंगे तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। गुरु भक्ति व गुरु सेवा सबसे बड़ी है। गुरुओं की स्तुति इसलिए की जाती है ताकि हम भी उन जैसे बन जाएं और हमारे जीवन का आध्यात्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक रूप से उत्थान हो। उन्होंने यह भी कहा कि गुरू को भी जांच और परख करके ही बनाना चाहिए। अगर उल्लू जैसे को गुरु बनाओगे तो गड्ढे में ही पड़ोगे। गुरु बनाओ तो सोच समझकर बनाओ जो भव से पार करवाने में समर्थ हो बनाएं। एक बार गुरु बना लिया तो जीवन में सदा आनंद ही आनंद रहेगा। उन्होंने कहा कि जीवन में सबसे पहले शिक्षक माता-पिता, फिर स्कूली शिक्षक और उसके उपरांत आध्यत्मिक गुरु होते हैं। गुरु का मतलब है जीवन से अंधकार को दूर करने वाला। गुरू धारणा करने के उपरांत शिष्य के भी कुछ नियम होते हैं।
शिष्य वही है जो अपने गुरु की आज्ञा के साथ चले। गुरुओं की विनय करोगे तो जीवन में निरंतर आगे बढ़ते चले जाओगे। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति की सफलता के पीछे गुरु का हाथ होता है। गुरु को भगवान से भी बढ़कर और उजाले का दीप माना जाता है। गुरु के बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा है। गुरु के सहयोग से ही हर व्यक्ति सफल बनता है। शिक्षा तथा संस्कार दोनों की प्राप्ति एक साथ हम केवल गुरु से ही प्राप्त कर सकते है। गुरु ही वह व्यक्ति होता है जो खुद एक स्थान पर रहकर दूसरों को अपनी मंजिल तक पहुंचाता है। मनुष्य के लिए भगवान से भी बढ़कर गुरु को माना जाता है क्योंकि भगवान हमें जीवन प्रदान करता है और गुरु हमें शिक्षा देकर इस जीवन को सही ढंग से जीना सिखाते हैं। गुरू हमें अंधकार से उजियारे की ओर ले जाने का कार्य करते हैं। गुरु हमें अंधकार रूपी इस जीवन में प्रकाश रूपी ज्ञान देते हैं।

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