जीवन में दुखों का कारण आशा और तृष्णा हैं: नवीन चंद्र महाराज

एस• के• मित्तल 
सफीदों,     नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि कटु शब्दों को सुनकर नजरअंदाज करना भी एक तप है। भाषा से व्यक्ति के चरित्र व व्यवहार की पहचान होती है। यदि बोलने में कहीं चूक होती है तो विवाद पैदा होता है। ऐसे में मनुष्य को अपनी भाषा पर नियंत्रण रखना चाहिए। व्यक्ति को थोड़ा धीमे, कम और मधुर भाषा का प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि असली तप हर परिस्थिति में मन की प्रसन्नता को बनाए रखना है।
जो धर्म की शरण आता है वह शीघ्र भवपार हो जाता है। मनुष्य के जीवन में दुखों का कारण उसके मन में आशा और तृष्णा के भाव हैं जो विकारों को जन्म देते हैं। उससे बचने के लिए विकारों को त्यागना होता है। आत्मशुद्धि और आत्मा के उद्धार के लिए शक्ति के अनुरूप तप व त्याग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अच्छी सोच, अच्छा चिंतन व अच्छे विचार वाला व्यक्ति स्वयं के साथ दूसरे का भी कल्याण कर सकता है। जहां व्यक्ति में दूसरे को नीचे गिराने, ईष्र्या, द्वेष भावना की मनोवृति होती है, वहां समाज भी विकास नहीं कर सकता। ऐसे मामले में संबन्धित व्यक्ति के साथ परिवार व समाज का भी पतन होना निश्चित है।

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