डाक्टर्स डे पर विशेष :: प्रसिद्ध आर्थो सर्जन डा. सुरेश अरोड़ा ने पूरा हास्पिटल एरोप्लेन से शिफ्ट कर दिया था भुज में, पांच दिन में किए थे 250 आपरेशन

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पऱ्सिद्ध सीनियर आर्थो सर्जन डा. सुरेश अरोड़ा

  • शहर के पऱ्सिद्ध डाक्टर सुरेश अरोड़ा ने 2001 में जब गुजरात के भुज में भूंकप आया था, तब इन्होंने अपना पूरा हास्पिटल एरोप्लेन से लिफ्ट कर वहां शिफ्ट कर दिया था।

धीरेंदऱ् सिंह राजपूत

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चाहे 2001 में गुजरात के भुज में आया भूकंप हो या फिर 2020 में आया कोरोना। देश में आए ऐसे संकट भरे मौकों पर डाक्टरों ने अपने जीवन की परवाह किए बिना सेवा और सर्मपण के साथ लोगों का इलाज किया। इसीलिए उन्हें आज भगवान का दर्जा दिया जाता है। शहर के पऱ्सिद्ध सीनियर आर्थो सर्जन डा. सुरेश अरोड़ा के जिद, जुनून और जज्बे की एक कहानी पढ़िए। जिन्होंने 2001 में जब गुजरात के भुज में भूंकप आया था, तब इन्होंने अपना पूरा हास्पिटल एयर लिफ्ट कर वहां शिफ्ट कर दिया था। इनकी जिद थी घटनास्थल पर टीम के साथ पहुुंचने की। जुनून था भूकंप में हताहत हुए लोगों की मदद करने की और जज्बा ऐसा था कि बिना थके काम कर पांच दिन में घायलों के 250 आपरेशन कर डाले थे।

फरीदाबाद। वह टीम जिसने भुज में पांच दिन में 250 आपरेशन किए थे।

फरीदाबाद। वह टीम जिसने भुज में पांच दिन में 250 आपरेशन किए थे।

भुज में इतना भयंकर भूंकप आया था कि उसमें करीब 13 हजार लोगों की जान चली गई थी। उस दौरान भूकंप से तबाह हुए लोगों की मदद के लिए पूरा देश खड़ा था। ऐसे में फरीदाबाद स्थित सूर्या आर्थो एंड ट्रामा सेंटर के संचालक डा. सुरेश अरोड़ा (एमएस आर्थो) भी डाक्टरी की एक मिसाल कायम करते हुए हास्पिटल का पूरा सामान एयर लिफ्ट कर अपनी टीम के साथ भुज पहुंच गए थे। डा. ््अरोड़ा के अनुसार वे अस्पताल का पूरा सामान ट्रक में लोड कर फरीदाबाद से दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे। वहां से फिर एरोप्लेन से घटनास्थल के लिए रवाना हुए थे। भूकंप से तबाही का भुज में जो मंजर था, वह बहुत ही वीभत्स था। भूकंप में हताहत हुए लोगों को मेडिकल की सख्त जरूरत थी। वहां आए विनाशकारी भूकंप के कारण मेडिकल सेटअप जमाना आसान नहीं था। लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने कोशिश कि जल्द से जल्द लोगों को मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराई जा सके। उन्होंने भुज के एक स्कूल में मेडिकल सेटअप खड़ा कर पऱ्भावितों का इलाज शुरू किया। उनके साथ यहां से मेडिकल की एक पूरी टीम गई थी। इस टीम में जींद के डा. राणा, डा. नरेंदर घई, डा. संजीव गुप्ता, जींद के ही डा. गोयल सहित अन्य लोग शामिल थे। टीम के भुज पहुंचते ही इसने कुछ ही घंटे में मेडिकल वर्किंग शुरू कर दी थी। रात-दिन लगातार काम कर पांच दिन में टीम ने करीब 250 आपरेशन किए थे। डा. अरोड़ा के अनुसार वहां के जो हालात थे उस समय न किसी को नींद आ रही थी न भूख लग रही थी। जब टीम का कोई सदस्य काम करते-करते थक जाता था, तो वह थोड़ी देर के लिए रेस्ट कर फिर से आपरेशन और घायलों के इलाज में लग जाता था। यही कारण था कि पांच दिन में टीम ने 250 आपरेशन किए थे। डा. सुरेश अरोड़ा कहते हैं कि भुज में काम कर उन्हें जो मानसिक सुकून मिला था, वह डाक्टरी के पेशे में आज तक नहीं मिला, क्योंकि विपरीत परिस्थियों और गंभीर हालात में वहां हमने व हमारी टीम ने काम किया था।

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फरीदाबाद। इस तरह ट्रक में अस्पताल का सामान लेकर भुज के लिए रवाना हुए थे।

फरीदाबाद। इस तरह ट्रक में अस्पताल का सामान लेकर भुज के लिए रवाना हुए थे।

डा. सुरेश अरोड़ा के साथ पत्नी और बेटा भी डाक्टर:

डा. सुरेश अरोड़ा ने 1982 में रोहतक मेडिकल कालेज से एमबीबीएस किया था। इसके बाद 1986 में इन्होंने एमएस किया। इसके बाद ये 1994 तक बीके जिला अस्पताल में डाक्टर रहे। इसके बाद इन्होंने अपनी पैऱ्क्टिस शुरू कर दी। इनकी पत्नी डा. हर्ष नंदिनी भी डाक्टर हैं। वे ईएसआई मेडिकल कालेज में पऱ्ोफेसर हैं। वे मेडीसिन एमडी हैं। जबकि इनके बेटे कर्ण अरोड़ा भी आर्थो एमएस हैं। वे भी फरीदाबाद के ईएसआई मेडिकल कालेज और अस्पताल में डाक्टर हैं।

 

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