श्री कृष्णा आर्ट एंड कल्चर सोसायटी ने किया आयोजन
एस• के• मित्तल
सफीदों, श्री कृष्णा आर्ट एंड कल्चर सोसायटी द्वारा गांव खेड़ा खेमावती की कश्यप चौपाल में सांग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्यातिथि कार्यकारी खण्ड शिक्षा अधिकारी दलबीर सिंह मलिक व राष्ट्रीय युवा अवार्डी सुभाष ढिगाना रहे। कार्यक्रम में बतौश्र विशिष्टातिथि सफीदों बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मंजीत बैरागी व वरिष्ठ पत्रकार जोगिंद्र बीरवाल ने शिरकत की।
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कार्यक्रम की अध्यक्षता सोसाइटी के प्रधान विजय कुमार ने की। इस मौके पर आए अनवर राणा एण्ड पार्टी के हरियाणवीं कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियां देकर सभी का मन मोह लिया। कलाकारों ने गीतों के माध्यम से किस्से सुनाकर लोगों को भारतीय संस्कृति से आत्मसात करवाया। अपने संबोधन में मुख्यातिथि कार्यकारी बीईओ दलबीर मलिक ने कहा कि सांग हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा रहे हैं। सांग को देखने व सुनने के लिए लोग दूर-दूर से देखने के लिए आते थे। उन्होंने कहा कि जब गांव में विकास के लिए मंदिर या चौपाल बनानी होती थी तो सांग के जरिये चंदा भी एकत्रित किया जाता था और लोग खुले मन से दान देते भी थे लेकिन समय के साथ-साथ आज बदलाव आ चुका है। आज इंटरनेट व मोबाइल फोन ने सभी सब चीजों को पीछे छोड़ दिया है। हमें अपनी संस्कृति को भूलना नही चाहिए।
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वहीं युवा अवार्डी सुभाष ढिगाना व बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मंजीत बैरागी ने कहा कि विलुप्त होती हरियाणवीं संस्कृति को बचाने के लिए संस्था महत्वपूर्ण प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि सांग का उद्भव 1300 ईस्वी के आसपास हुआ तथा सन् 1850 से 1950 तक सांग का स्वर्णिम काल रहा है। उसके बाद सांग की कला आधुनिकता की चकाचौंध में विलुप्त होती चली गई। उन्होंने कहा कि दादा लखमी चंद व मांगे राम ने सांग को जीवित रखने में अपना महत्वपूर्ण रोल अदा किया। वरिष्ठ पत्रकार जोगिंद्र बीरवाल ने कहा कि अब लोग आधुनिकता की चकाचौंध व मोबाइल से जिस तरह तेजी से बढ़े है लेकिन वे अब कही ना कहीं इन सब चीज़ों से उब चुके हैं। आज का युवा अपनी पुरात्न संस्कृति की तरफ लौटना चाहते हैं। इस प्रकार के कार्यक्रमों से लोगों को संस्कृति से जुडऩे व जानने का मौका मिलता है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे भारत की महान संस्कृति को बचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करें।
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वहीं संस्था के प्रधान विजय कुमार ने बताया कि उनकी संस्था ने सरकार के सहयोग से विलुप्त होती हरियाणवीं संस्कृति को पुनर्जिवित करने का बीड़ा उठाया है। इस अभियान के तहत क्षेत्र के गांव-दर-गांव हरियाणवीं सांग करवाए जा रहे हैं। कार्यक्रम के अंत में अतिथियों को स्मृति चिन्ह व शॉल भेंट करके सम्मानित किया गया।