हिसार, एनसीआर और गुजरात के अस्पतालों के काटे चक्कर: मूत्रोत्संग रोग से मुक्ति पाने के लिए 5 लाख खर्च करके भी राहत नहीं मिली तो आयुर्वेद में 5 हजार से हुआ ठीक

 

ऐसा काेई राेग नहीं जिसका इलाज आयुर्वेद में नहीं। यह बात वरदान साबित हुई है एक शिक्षण संस्थान में कार्यरत 50 वर्षीय कार्यशाला अनुदेश के लिये। मूत्राेत्संग बीमारी (मूत्र अवरुद्ध) से ग्रस्त हाेने के कारण 7 साल तक हिसार सहित एनसीआर व गुजरात के बड़े-बड़े निजी अस्पतालाें एवं रिसर्च सेंटर में इलाज करवाया। दवाइयाें से राहत नहीं मिली ताे सर्जरी भी करवा ली।

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करीब 5 लाख रूपये खर्च करके बीमारी से मुक्ति नहीं मिली। ऐसे में न सिर्फ शारीरिक, मानसिक बल्कि आर्थिक नुकसान की पीड़ा ने अनुदेशक काे निराश कर दिया था। ऐसे में किसी की सलाह पर सिविल अस्पताल के आयुष विभाग में एएमओ डाॅ. सुखबीर वर्मा से परामर्श लेकर इलाज शुरू करवाया।

वर्ष 2021 में पंचकर्म में वस्ति थैरेपी व ताकत की दवाइयाें से इलाज जारी रहा। स्थिति यह है कि बिना किसी रुकावट एवं पीड़ा के यूरिन पास हाेने लगा है। इस दाैरान सिर्फ 5 हजार रूपये की दवाइयां खाकर ठीक हुए हैं।

गुनगुने पानी में आधा घंटा बैठता और नलकी लगाकर यूरिन पास करवाता था: अनुदेशक

^वर्ष 2013 में मूत्राेत्संग की दिक्कत शुरू हुई थी जाेकि बढ़ने लगी थी। तब टब में गुनगुना पानी करके उसमें आधा घंटा बैठता था। इसके बाद यूरिन पास हाेता था। पर, यह कब तक करता। इसलिए निजी अस्पतालाें में चक्कर काटने शुरू कर दिए। अस्पताल पर अस्पताल बदलता गया लेकिन बीमारी जस की तस रही। सर्जरी करवा ली और गुजरात के यूराेलाॅजी रिसर्च सेंटर में चला गया। नसें कमजाेर हाेने के कारण ब्लैडर में सूजन अा गई। यूरिन पास न हाेने पर दर्द हाेने लगा था।

फिर बार-बार नलकी अंदर डालकर यूरिन पास करना पड़ता था। 2020 तक जब ऐलाेपैथी इलाज ने निराश कर दिया, तब आयुर्वेद से इलाज करवाकर जीने की नई उम्मीद जगी। अब न गुनगुने पानी में बैठना पड़ता है और न ही नलकी लगानी पड़ती हैं। ताकत की दवा का सेवन कर रहा हूं जिसके काेई साइड इफेक्ट नहीं है।”

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– जैसा कि राेगी अनुदेशक ने बताया।

हमारे पास राेगी आटाे इम्युन डिसीज मूत्राेत्संग से ग्रस्त आया था। इसका आयुर्वेद पद्धति से इलाज शुरू किया था। ब्लैडर में सूजन व मूत्र नली का मार्ग अवरुद्ध था। पंचकर्म की वस्ति थैरेपी शुरू करके ताकत बढ़ाने की औषधि देना शुरू किया था। इसके चलते कमजाेर नसें ठीक हाेने लगी और बार-बार नलकी डालकर यूरिन पास करने की समस्या दूर हाेती गई।

सहज तरीके से बिना किसी चीरफाड़ और नाममात्र शुल्क में इलाज हुआ है। ऐसे राेगियाें की संख्या बढ़ी है। इसके कारण आयुर्वेद विभाग में पंचकर्म करवाने वाले रोगियों की 1-2 माह का इंतजार भी करना पड़ रहा है।” -डाॅ. सुखबीर वर्मा, एएमओ आयुष विभाग।

 

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