श्रीहरि के कृपापात्रों को कोई भयभीत नहीं कर सकता: जीवानुगा शैलवासिनी दासी

एस• के • मित्तल 
सफीदों, जीबीपीएस भक्तवृन्द सफीदों के तत्वावधान में नगर के ऐतिहासिक नागक्षेत्र सरोवर प्रांगण में चल रही श्रीमद् भागवत कथामृत में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कथावाचक जीवानुगा शैलवासिनी दासी ने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा जीवन-चक्र से जुड़े प्राणियों को उनकी वास्तविक पहचान करवाती है, आत्मा को अपने स्वयं की अनुभूति से जोड़ती हैं तथा सांसारिक दुख, लोभ-मोह-क्षुधा जैसी तमाम प्रकार की भावनाओं के बंधन से मुक्त करते हुए नश्वर ईश्वर तथा उसी के एक अंश आत्मा से साक्षात्कार करवाती है।
उन्होंने कहा कि
श्रीमद्भागवत कथा के सुनने मात्र से हजारों अश्वमेघ यज्ञ आयोजनों के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। तीर्थों की यात्रा से भी अधिक पुण्यकारी है भागवत कथा का पाठ या इसे सुनना है। इसे सुनने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे सुनने वाले पर स्वयं श्रीहरि विष्णु की कृपा रहती है, इसलिए उसके जीवन की सभी समस्याओं का निवारण होता है। जगत के पालनहार की कृपा दृष्टि मिलने से व्यक्ति के जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं तथा जीवन में प्रगति, खुशहाली तथा समृद्धि के द्वार खुलते हैं। इसे आयोजित कराने तथा सुनने वाले व्यक्तियों-परिवारों के पितरों को शांति तथा मुक्ति मिलती है। कथा को सुनने मात्र से व्यक्ति के जीवन से जुड़ा हर दोष नष्ट होता है, उसकी नकारात्मकता जाती रहती है और हर प्रकार से वह सकारात्मक हो जाता है। उसे स्वास्थ्य, समृद्धि मिलती है तथा भाग्य में वृद्धि होती है। वहीं आत्मिक ज्ञान की प्राप्ति करते हुए मनुष्य सांसारिक दुखों से निकल पाते हैं और उसकी हर मनोकामना की पूर्ति होती है।
श्रीहरि के कृपापात्रों को संसार में कोई भयभीत नहीं कर सकता। पारिवारिक-मानसिक अशांति, क्लेश का नाश होता है, शत्रुओं पर विजय मिलती है तथा उनका शमन होता है। रोजगार के नए अवसर मिलते हैं तथा समाज में प्रसिद्धि-सम्मान की प्राप्ति होती है। दरिद्रता का नाश, दुर्भाग्य तथा सभी प्रकार से क्रोध-शोक का नाश होता है। उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि वे श्रीमद्भागवत कथा को आत्मसात करते हुए उसे पठन व पाठन करें।

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