वर्ल्ड चाइल्ड लेबर-डे पर विशेष: बच्चों काे चाेरी करते व झूठन खाते देखा ताे शुरू किया स्कूल, ताकि इन्हें मजदूरी न करनी पड़े

 

 

 

12 जून काे वर्ल्ड चाइल्ड लेबर-डे मनाया जाता है। जिले में 12 साल में चाइल्ड हेल्पलाइन के पास 1163 केस चाइल्ड लेबर के आए हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न हाेने के चलते अभिभावक बच्चाें काे शिक्षित करने की बजाय उनसे काम करवा रहे हैं। इससे बच्चाें का भविष्य ही खत्म हाे जाता है। वहीं शहर की कुछ संस्थाएं इस तरह के बच्चाें काे पढ़ाने के लिए दिन-रात प्रयास कर रही है।

वर्ल्ड चाइल्ड लेबर-डे पर विशेष: बच्चों काे चाेरी करते व झूठन खाते देखा ताे शुरू किया स्कूल, ताकि इन्हें मजदूरी न करनी पड़े

बच्चे पढ़ना चाहते हैं लेकिन काम करने पर मजबूर
केस-1: चाइल्ड लाइन के पास 8 जून काे फाेन आया कि 4 छाेटे बच्चे एकता विहार में दुकान पर काम कर रहे हैं। माैके पर टीम पहुंची ताे पता चला कि उनमें से 2 बच्चे स्कूल जाते हैं, लेकिन अब छुट्टियां पड़ने से अभिभावकाें ने काम पर लगा दिया है। तब टीम ने रेस्क्यू करके पेरेंट्स काे समझाकर बच्चाें काे काम से हटवाया।

केस-2: 2 अगस्त 2020 काे चाइल्ड लाइन के पास काॅल आई कि 2 बच्चे किराए के घर में रह रहे हैं। पिता की माैत के बाद मां भी छाेड़कर चली गई है। बच्चे कम उम्र के हैं और मकान मालिक उनसे घर का काम करवा रहा है। काेऑर्डिनेटर अजय तिवारी ने टीम काे भेजा। सूचना बाल कल्याण समिति व जिला बाल संरक्षण अधिकारी को दी। इसके बाद बच्चाें काे रेस्क्यू किया। बच्चाें के नाना व मां काे बुलाकर उनकी काउंसिलिंग की गई व बच्चाें का स्कूल में एडमिशन करवाया।

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बच्चों काे पढ़ाने के लिए कमलेश ने टीचर की नाैकरी छाेड़ी, दानी लाेगाें की मदद से मुफ्त स्कूल चला रहीं

सेक्टर-9 निवासी 77 साल की कमलेश अराेड़ा स्लम एरिया, कूड़े बीनने वाले व गरीबाें के बच्चाें काे इस उद्देश्य से साक्षर कर रही हैं ताकि वे छाेटी उम्र में मजदूरी न करने न लग जाएं। 1991 में उन्हाेंने इस मुहिम काे शुरू किया। कमलेश डीएवी काॅलेज में हिस्ट्री की लेक्चरर थीं, लेकिन बच्चाें काे साक्षर करने के लिए उन्हाेंने नाैकरी छाेड़ दी। उन्हाेंने बताया एक दिन कुछ बच्चाें ने घर के बाहर बने गटर काे चाेरी कर लिया। कुछ दिन बाद देखा कि घर के सामने शादी में बाहर झूठे पत्तल में से झूठन खा रहे थे। दाेनाें घटनाआें ने दिल पसीच दिया। तब उन्हाेंने ठाना समाज के इसी वर्ग काे शिक्षित करना है।

उन्हाेंने ऐसे कुछ बच्चाें काे बुलाकर पूछा कि पढ़ना चाहते हाे ताे उनके घर आ जाना। अगले दिन बच्चाें के लिए घर की लाॅबी तैयार की। नाेटबुक व स्टेशनरी का सामान तैयार रखा। शाम काे बच्चे घर पहुंचे। सबसे पहले उन बच्चाें काे राेज नहाने, स्वच्छ रहने, उठने-बैठने, बड़ाें का आदर-सत्कार करने व प्रभु की प्रार्थना सिखाकर उनकी दिनचर्या काे बदला। फिर अन्य स्कूलाें की तरफ प्रार्थना के बाद निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार बच्चाें काे पढ़ाना शुरू किया। बच्चाें ने भी पढ़ने में रुचि दिखाई।

राेजाना उनके घर शाम काे बच्चाें काे पढ़ाने का सिलसिला शुरू हाे गया। कुछ समय बाद बच्चाें काे पढ़ाने के लिए टीचर भी मिल गई। 5 महीने बाद डीएवी काॅलेज से हिस्ट्री लेक्चरर की नाैकरी भी छाेड़ दी और नाहन हाउस में मंदिर में मानव कल्याण एवं शिक्षा केंद्र स्कूल शुरू किया। शुरू में ताे खुले आसमान के नीचे मंदिर में स्कूल चलाया जाता था। उस समय नाहन हाउस में प्राइवेट स्कूल श्रीमती कस्तूरबा गांधी चल रहा था। संचालक की माैत के बाद स्कूल बंद हाेने की कगार पर था। तब उन्हाेंने पदाधिकारी से संपर्क किया और स्कूल काे अपना बना लिया। तब से उनका स्कूल यहीं चल रहा है।

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अब 8वीं तक के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। संस्था के सदस्य व दानी लाेगाें से ही खर्चाें का वहन करके नि:शुल्क स्कूल चलाया जा रहा है। कमलेश ने बताया कि स्कूल से पढ़ने के बाद बच्चाें काे दूसरे स्कूलाें में एडमिशन दिलवा दिया जाता है जहां वे हायर एजुकेशन लेते हैं। अब तक उनके द्वारा साक्षर हुए कई बच्चे लैब टेक्नीशियन, एमएनसी में नाैकरी कर रहे हैं।

इद्रीश फाउंडेशन साल 2015 से प्राेजेक्ट केयर के जरिए बच्चों काे कर रही शिक्षित
साल 2015 से इद्रीश फाउंडेशन गरीब व जरूरतमंद बच्चाें काे शिक्षा देने के लिए प्रयासरत है। फाउंडर नेहा ने बताया कि 2017 के दाैरान इंदिरा पार्क में बच्चाें काे पढ़ाने जाते थे ताे वहां 2 बच्चे कृष्णा व प्रिंस ऐसे मिले जाे चाय की दुकान पर काम करते थे। उन बच्चाें के लिए फाउंडेशन ने काम किया। गवर्नमेंट स्कूल में कृष्णा का चाैथी व प्रिंस काे दूसरी क्लास में एडमिशन करवाया। उसके बाद दाेनाें का एडमिशन एसडी ब्वाॅयज स्कूल में करवाकर उन्हें शिक्षित किया। गाैरतलब है फाउंडेशन इसी तरह के कई बच्चाें काे प्राेजेक्ट केयर के तहत एडमिशन करवाकर शिक्षित कर रही है।

अब तक मिले इतने केस

  • साल 2011 में 25 केस
  • 2012 में 28 केस
  • 2013 में 48 केस
  • 2014 में 82 केस
  • 2015 में 87 केस
  • 2016 में 77 केस
  • 2017 में 134 केस
  • 2018 में 129 केस
  • 2019 में 214 केस
  • 2020 में 144 केस
  • 2021 में 178 केस
  • 2022 में अब तक 17 केस

 

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