राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का बेड़ा हुआ मजबूत, विभाग ने हायर की जीपीएस लैस 12 गाडिय़ां

आंगनबाड़ी व स्कूलों में हो सकेगी ज्यादा बच्चों की स्क्रीनिंग
सिविल अस्पताल कमेटी ने की गाडिय़ों की फिजिकल वेरिफिकेशन

एस• के• मित्तल 
जींद,         राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) की टीमें अब पहले से ज्यादा और मजबूत होने जा रही हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन टीमों के लिए 12 गाडिय़ां किराए पर हायर की गई हैं। शनिवार को सिविल सर्जन डॉ. मंजू कादियान के दिशा-निर्देशन में डिप्टी एमएस डॉ. राजेश भोला ने इन गाडिय़ों की फिजिकल वेरिफकेशन की। इस दौरान स्वास्थ्य निरीक्षक राममेहर वर्मा, रेफरल ट्रांसपोर्ट फ्लीट मैनेजर मौजूद रहे। फिजिकल वेरिफिकेशन के दौरान तीन-चार गाडिय़ों में जीपीएस सिस्टम सही नहीं पाया गया तो वहीं तीन-चार गाडिय़ों के चालकों की पुलिस वेरिफिकेशन नहीं मिली। हालांकि उन्होंने पुलिस वेरिफिकेशन के लिए ऑनलाइन अप्लाई किया हुआ था।
इसके अलावा तीन गाडिय़ों का रजिस्ट्रेशन मैच नहीं हुआ। चंडीगढ़ से जो लिस्ट भेजी गई थी, उनकी जगह दूसरी गाडिय़ां थी। इसके अलावा सभी गाड़ी चालकों के लाइसेंस को फिजिकल वेरिफाई किया गया और गाड़ी चलाकर जीपीएस ट्रैकर को चेक किया गया। चालकों को इन खामियों को जल्द दुरुस्त करने के लिए कहा गया है। डिप्टी एमएस डॉ. राजेश भोला ने बताया कि इन गाडिय़ों का फायदा यह होगा कि आंगनबाड़ी व स्कूलों में बच्चों की अधिक से अधिक स्क्रीनिंग की जा सकेगी। इसके अलावा कई बार गंभीर बीमारी से ग्रस्त बच्चे मिलते हैं, जिन्हें पैनल के अस्पतालों में छोडऩे के लिए भी इन गाडिय़ों का प्रयोग किया जाएगा। इसके अलावा बच्चा दिव्यांग है और वो अस्पताल आने में असमर्थ है तो इन गाडिय़ों के माध्यम से भी बच्चे को उपचार के लिए सिविल अस्पताल लाया जा सकेगा।
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यह है आरबीएसके कार्यक्रम
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का लक्ष्य बच्चों के जन्म से लेकर 18 साल तक उनके जन्म जन्म दोष, कमियों, बीमारियों, विकास में होने वाले विलंब के साथ-साथ समय से पहले पहचान कर उन्हें उचित उपचार दिलाना है। ग्रामीण क्षेत्रों में कई ऐसे बच्चे हैं जिनके परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है या वो चिकित्सक सेवा की पहुंच से दूर हैं, ऐसे बच्चों तक आरबीएसके की टीमें पहुंचती हैं और स्क्रीनिंग कर उनके इलाज में मदद करती हैं। योजना के तहत जन्म के समय कोई रोग, बीमारी या चेकअप के दौरान बीमारी का पता चलने पर बच्चे को मुफ्त इलाज दिया जाता है। इसके अलावा स्कूलों में चेकअप और नवजात शिशुओं को स्वास्थ्य केंद्रों पर जांच की जाती है।

अब तक दूसरों की गाडिय़ां हायर कर पहुंचती थी टीमें
जिला में आरबीएसके की टीमों को गांवों व दूर दराज के क्षेत्रों का दौरा करना होता है। अब तक विभागीय तौर पर गाड़ी की सुविधा नहीं थी और इन टीमों अपने साधन या फिर दूसरी गाडिय़ों को हायर कर स्क्रीनिंग के लिए मौके पर पहुंचना होता था। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने आरबीएसके टीमों की इस समस्या को समझा और इनके लिए किराए पर गाड़ी हायर करने का निर्णय लिया। इसी निर्णय के तहत जींद स्वास्थ्य विभाग को भी 12 गाडिय़ां मिली हैं। गाडिय़ां जीपीएस से लैस होंगी तो वहीं गाडिय़ों को एक माह में कुल दो हजार किलोमीटर कम से कम चलना होगा। चालक हमेशा गाड़ी के साथ रहेगा। जैसे ही टीमें अपना काम खत्म कर वापस आएंगी तो चालक उन्हें वापस लेकर आएगा।

गाडिय़ों में जीपीएस होने से नही होगा दुरूपयोग
सिविल अस्पताल के डिप्टी सीएमओ डॉ. रमेश पांचाल ने बताया कि आरबीएसके की टीमें इन गाडिय़ों के माध्यम से आंगनबाड़ी व स्कूलों में पहुंचेंगी। जिससे बच्चों की अधिक से अधिक स्क्रीनिंग की जा सकेगी। इसके जांच में गंभीर बीमारी से ग्रस्त बच्चा मिलने पर उसे पैनल के अस्पतालों में भी इन्हीं गाडिय़ों से छोड़ा जा सकेगा। यह गाडिय़ां जीपीएस से लैस होंगी और कोई भी इनका दुरूपयोग नहीं कर सकेगा।

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