यजमान के संकल्प की पूर्ति आचार्य का प्रथम कर्तव्य: आचार्य शैलेन्द्र शुक्ल

एस• के• मित्तल   
सफीदों,        सफीदों शहर के महाभारतकालीन नागक्षेत्र मंदिर के सत्संग हाल में चल रही सियाराम कथा में आचार्य शैलेन्द्र शुक्ल ने कहा कि जब समुद्र के किनारे राघवेंद्र सरकार ने भगवान शिव की स्थापना की तो कोई आचार्य बनने के किए योग्य आचार्य नहीं मिला। जामवंत जी ने बताया कि प्रभु ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण शिव का परम भक्त एवं महाज्ञानी है। अगर वह तैयार हो जाए तो यज्ञ संभव हो सकता है।
भगवान राम ने अपने अनुज लक्ष्मण को लंका भेजा कि वहां जाकर रावण से प्रार्थना करिए की वो हमारे यज्ञ के आचार्य बनें। लक्ष्मण ने जाकर अपने कुल गोत्र के साथ रावण को प्रणाम करने के बाद राम का संदेश दिया तो रावण ने सहर्ष अपनी स्वीकृति दे दी और कहा कि यज्ञ में प्रयुक्त सारी सामग्री वो खुद लेकर आएंगे। रावण मां सीता एवं यज्ञ में प्रयुक्त होने वाली सभी सामग्री के साथ राम जी का यज्ञ करने गया। उसने माता सीता एवं राम को यजमान बनाकर लंका विजय हेतु शिव का यज्ञ करवाया एवं उनको लंका विजय का आशीर्वाद भी दिया।
आचार्य रावण ने दक्षिणा में अपने अंत समय में अपने दोनों यजमान सीताराम को अपने सामने होने का वचन मांगकर लंका प्रस्थान कर गया। इस अवसर पर बृजभूषण गर्ग, प्रवीण मित्तल, कृष्णलाल माहला, राणा प्रताप सिंह, मनोज गर्ग, अशोक गर्ग व भारत भूषण रेवड़ी सहित बड़ी संख्या में भक्तजन मौजूद थे।

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